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साधु पृष्ट त्वया भूप : सज्जनानां मुख्य प्रदं । यस्य श्रवणतो भध्या सव्रता यांति मोक्षतां ॥४॥ च्छोविमलनाथस्य पुराण विमल श्रवणोत्सुकः । तर्हि चंद्र चकोरो धा भूत्वा त्वं सादरं शृणु ॥ ५ ॥ अधैव धातकीखंडो वर्ततेऽनेकवस्तुभृत् । पनवेडूर्यनीलाभरन Ird स्वर्णादि स्थानिकः ॥ ६ ॥ चतुर्लक्षामयोजनकैर्विस्तारतां गतः । कुण्डलाकृति कालाब्धि बेष्टितोऽनेकचित्रधृतू ॥ ७ ॥ तम्य पश्चिनका
ज्ञानके स्वरूपके वर्णनका उसमें विशेष संबंध था। महामेघमें जिसप्रकार जल रहता है भगवानकी दिव्यध्वनि भी चारित्ररूपी जलसे परिपर्ण थी अर्थात दिव्यध्वनि द्वारा वर्णन करनेका खास लक्ष्य सम्यकचारित्र था । एवं महामेघके समय जिसप्रकार संसार उलट पुलट हो जाता है उस प्रकार वह दिव्य ध्वनि भी संसारको उलट पुलट--विच्छेद करानेवाली थी उसके संबंधसे लोग संसार के नाश करने के लिये प्रवृत्त होते हैं ॥३॥ महाराज श्रेणिकके प्रश्नके उत्तरमें भगवान महावीरने अपनी दिव्य ध्वनिसे कहा
हे राजन ! तुम सज्जन पुरुपोंको सुख प्रदान करनेवाले हो इसलिये तुमने जो प्रश्न किया है वह बहुत ही उत्तम किया है क्यों कि तुम्हारे प्रश्नके उत्तर में जो भी कहा जायगा उसके सुननेसे भव्य जीव समीचीन व्रतोंसे भूषित होंगे और उन व्रतोंके संबंधसे मोक्ष प्राप्त करेंगे ॥१॥ नरपाल ! यदि तुम्हें भगवान विमलनाथ के चारित्र सुननेकी विशेष उत्कंटा है तो चकोर पक्षी जिस प्रकार चंद्रमाकी ओर इकटक दृष्टि लगाता है उसी प्रकार तुम भी विमलनाथके चरित्रकी अोर दृष्टि | लगाकर उसे ध्यानपूर्वक सुनो मैं उसका वर्णन स्पष्टरूपसे करता हूं:
इस पृथ्वीपर एक धातुकी खंड नामका द्वीप है जो कि अनेक मनोज्ञ यस्तु अांका का भंडार है । नीलकमल और बैडूर्य मणियोंकी प्रभाका धारक है । रस और सुवर्णकी PS अनेक ग्बानियोंसे शोभायमान है । चार लाख योजन प्रमाण चौड़ा है। कुण्डलके समान गोला-!
कार है । कालोदधि समुद्र चारों ओरसे उसे घरे हैं एवं वह अनेक क्षेत्रोंका धारण करने वाला है।
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