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________________ ९४ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका प्रतिक्रमण-क्रियायां कृत-दोष-निराकरणार्थ पूर्वाचार्यानुक्रमेण, सकलकर्म-क्षयार्थ, भाव-पूजा-बन्दना-स्तव-समेतं श्री सिद्धभक्ति कायोत्सर्ग करोम्यहम्। अब सब अतिचारों की विशुद्धि के लिये पाक्षिक प्रतिक्रमण क्रिया में किये गये दोषों का निराकरण करने के लिये पूर्व आचार्यों के अनुक्रमेण से सम्पूर्ण कर्मों के क्षय के लिये भाव पूजा वन्दना स्तव सहित सिद्ध भक्ति संबंधी कायोत्सर्ग को मैं करता हूँ। णमो अरहताणं ... इत्यादि सामायिक दंडक को पढ़कर कायोत्सर्ग करें पश्चात् “थोस्सामि'' इत्यादि स्तुति पढ़कर सिद्धभक्ति का पाठ करें। . सिद्धभक्ति सिद्धा-नुघूत-कर्म-प्रकृति-समुदयान् साधितात्म-स्वभावान् । वन्दे सिद्धि-प्रसिद्धर, तदनुपम-गुण-प्रमहाकृष्टि- तुष्टः । सिद्धिः स्वात्मोपलानियः पृगुण-गण-गणोचलाहि दोषापड़ागद । योग्योपादान-युक्त्या दुषद् इह यथा हेम-भावोपलब्धिः ।।१।। नाभावः सिद्धि-रिष्टा न निज-गुण-हतिस्तत्-तपोभि- युक्तः । अस्त्यात्मानादि-बद्धः स्व-कृतज-फल-भुक्-तत्-क्षयान्मोक्षमागी।। ज्ञातादृष्टा स्वदेह-प्रमिति-सपसमाहार-विस्तार-धर्मा प्रौव्योत्पत्ति-व्ययात्मा । स्व-गुण-युत-इतो नान्यथा साध्य-सिद्धिः ।।२।। सत्वन्तर्बाह्य-हेतु-प्रभव-विमल-सदर्शन-ज्ञान-चर्या ___ संपद्धेति-प्रघात-क्षत-दुरित- तया व्यद्धिताधिन्त्य-सारैः । कैवल्यज्ञान-दृष्टि-प्रवर-सुख-महावीर्यसम्यक्त्व-लब्धि ज्योति-वातायनादि-स्थिर-परम-गुण-रद्भुतै-सिमानः ।।३।। जानन् पश्यन् समस्तं सम-मनुपरतं संप्रतृप्यन् वितवन, धुन्वन्ध्यान्तं नितान्तनिधित-मनुपमंत्रीणयन्नीशभावम् । कुर्वन्सर्व-प्रजाना-मपर-मभिमवन्ज्योति-रात्मानमात्मा, आत्मन्येवात्मनासौ क्षण-मुपजनयन्-सत्-स्वयंभूः प्रवृत्त: ।।४।। छिन्दन् शेषानशेषान् निगल-बल- कलींस्तै-रनन्त-स्वभावः, सूक्ष्मत्याग्यावगाहागुरु-लघुक-गुणैः क्षायिकैः शोभमानः ।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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