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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
ये नित्यं व्रत-मन्त्र- होम - निरता ध्यानाग्निहोत्रा कुलाः । षट् कर्माभि-रतास्तपो धन धनाः साधु क्रियाः साधवः । । शील - प्रावरणा गुण- प्रहरणा- चन्द्रार्क तेजोधिका ।
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मोक्ष द्वार कपाट-पाटन भटाः प्रीणंतु मां साधवः || ४ ||
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अन्वयार्थ – ( ये ) जो ( नित्यं ) प्रतिदिन ( व्रत मन्त्र - होम - निरता ) व्रत, मन्त्र, रूप, होम में निरत हैं, ( ध्यान ) ध्यानरूपी (अग्निहोत्राकुल) अग्नि में शीघ्र हवन करने वाले हैं ( षट्कर्माभिरताः ) षट् आवश्यक क्रियाओं में लीन हैं ( तपोधनधना: ) तपरूपी धन ही जिनका धन है ( साधु क्रियासाधवः ) साधु की क्रियाओं को साधने वाले हैं ( शीलप्रावरणा ) अठारह हजार शील ही जिनके ओढ़ने का वस्त्र है ( गुणप्रहरणा: ) चौरासी लाख गुण हो जिनके पास शस्त्र हैं ( चन्द्र अर्क तेजः अधिकाः ) चन्द्र और सूर्य के तेज से भी जिनका तेज अधिक हैं ( मोक्षद्वार कपाट ) मुक्ति महल के द्वार को ( पाटनभाः ) उद्घाटन / खोलने में जो भट हैं/ योद्धा हैं ( साधवः ) ऐसे साधुजन ( मां ) मुझ पर ( प्रीणन्तु ) प्रसन्न हों 1
गुरुवः पान्तु नो नित्यं ज्ञानं दर्शन- नायकाः ।
चारित्रार्णव गंभीरा मोक्ष - भार्गोपदेशकाः । । ५ । ।
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अन्वयार्थ --- ( ज्ञानदर्शननायकाः ) ज्ञान व दर्शन के स्वामी ( चारित्र आर्णव गंभीराः ) चारित्ररूपी सागर के धनी, गंभीर ( मोक्षमार्ग ) मोक्षमार्ग के ( उपदेशका: ) उपदेशक ( गुरव: ) गुरुजन / गुरुदेव ( नित्यं ) नित्य ही (नो ) हमारी (पांतु ) रक्षा करें।
अञ्चलिका
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• पालण
इच्छामि भंते! आइरिय भत्ति काउस्सग्गो कओ, तस्सालोचेठं सम्पणाण सम्मदंसण- सम्मचरित्त जुत्ताणं पंच विहाचाराणं आइरियाणं आयारादि- सुद- णाणोवदेसयाणं उवज्झायाणं ति रयण-गुण- प रयाणं सव्वसाहूणं; णिच्चकालं अच्छेमि, पुज्जेमि, वंदामि प्रणमस्सामि, दुक्खक्खओ कम्मक्खओ बोहिलाहो सुगइगमणं समाहिमरणं जिणगुण संपत्ति होउ मज्झं ।
अन्वयार्थ - ( भंते ) हे भगवन्! मैंने ( आयरियभत्ति काउस्सग्गो