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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका वस्त्र मात्र का त्याग अर्थात् नग्नता ( अण्हाणं ) स्नान का त्याग (खिदिसवणं) भूमि शयन ( अदंतवर्ण) दंत धवन नहीं करना ( ठिदि-भोयणं ) भूमि पर खड़े होकर भोजन करना (च ) और ( एयभत्तं ) दिन में एक बार भोजन करना ( खलु ) निश्चय से (एदे ) ये ( समणाणं ) मुनियों के ( मूलगुणा ) अट्ठाईस मूलगुण ( जिणवरेहिं ) जिनेन्द्र देव ने ( पण्णत्ता ) कहे हैं | ( एत्य ) इन मूलगुणों में ( पमाद कदादो ) प्रमाद जनित ( अइचारादो ) अतिचारों से ( अहं ) मैं ( पियत्तः ) निवृत्त होता हूँ । भाषायी महान व्रत है उन्हें महाव्रत कहते है । अव महापुरुषों के द्वारा जिनका आचरण किया जाता है वे महाव्रत हैं। अथवा स्वत: ही मोक्ष को प्राप्त कराने वाले होने से ये महान व्रत महाव्रत कहलाते हैं । अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ये पाँच महाव्रत हैं । पञ्चानां पापानां हिंसादीनां मनो वचः कायैः । कृतकारितानु- मोर्दंस्त्यागस्तु महाव्रतं महताम् ॥ ७२ ॥ । र. श्री. ।। सार्हति जं महल्ला आयरियं जं महल्लपुव्वेहिं । जं च महल्लाणि तदो महल्लया इत्तहे ताई ॥ ३० ॥ चा.पा. ॥ महापुरुष जिनका साधन करते हैं, पूर्ववर्ती महापुरुषों ने इनका आचरण किया है और ये स्वयं ही महान हैं अतः इन्हें महाव्रत कहते हैं । काय, इन्द्रिय, गुणस्थान, मार्गणा, कुल, आयु और योनि इनमें जीवों को जानकर इनमें प्रमत्तयोग से होने वाली हिंसा का परिहार करना अहिंसा महाव्रत है । रागादि से असत्य बोलने का त्याग करना और पर को ताप करने वाले सत्य वचनों का भी त्याग करना तथा सूत्र और अर्थ के कहने में भी अयथार्थ वचनों का त्याग करना सत्य महाव्रत है । ग्राम, नगर आदि में गिरी हुई, भूली हुई इत्यादि जो भी छोटी-बड़ी है और जो पर के द्वारा संगृहीत है ऐसे परद्रव्य को ग्रहण नहीं करना सो अचौर्य महास्रत है । वस्तु वृद्ध - बाला - युवती अथवा देव-‍ - मनुष्य तिर्यंच तीन प्रकार की स्त्रियों वा उनके प्रतिरूप (चित्र) को माता, पुत्री और बहन के समान समझ उन स्त्रियों से विरक्त होना ब्रह्मचर्य महाव्रत कहलाता है ।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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