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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका भावार्थद्रव्य- आहार, शरीर आदि । क्षेत्र- वसतिका, मार्ग, जिनालय आदि । काल- पूर्वाण्ह, मध्यान्ह और अपराण्ह आदि । भाव- संकल्प-विकल्प आदि ।
मैं, द्रव्य-शरीर आदि, क्षेत्र-वसतिका, मार्ग आदि, काल-भूत-भावी, वर्तमान अथवा पूर्वाह्र, मध्याह्र और अपराह्न में किये गये अपने अपराधों की शुद्धि के लिये मन-वचन-काय ये प्रतिक्रमण करता हूँ।
ए-इंदिया, बे-इंदिया, ते-इंदिया, चतुरिदिया, पंचिंदिया, पुढविकाइया-आउ-काइया, तेउ-काइया, वाउ काइया, वणष्फदि-काझ्या, तस-काइया, एदेसिं उद्दावणं, परिदावणं, विराहां, उवधादो, कदो वा, कारिदो वा, कीरंतो वा, समणुमण्णिदो तस्स मिच्छा मे दुक्कई । ___ अन्वयार्थ ( ए-इंदिया ) एकेन्द्रिय ( बे-इंदिया ) दो इन्द्रिय ( ते इंदिया ) तीन इंद्रिय ( परिदिया ) सार इन्द्रिय ( गमिंदिया पशेन्दिय ( पुढविकाइया ) पृथ्वीकायिक ( आउ-काइया )जलकायिक ( तेउ-काइया)अग्निकायिक ( वाउ-काइया ) वायुकायिक ( वणफ्फदि-काइया ) वनस्पति-कायिक ( तप-काझ्या ) त्रस कायिक ( एदेसिं) इन जीवों का ( उद्दावणं ) मारण ( परिदावणं ) मंतापन ( विराहणं) विराधन ( उवघादो ) उपघात अर्थात् एकदेश घात ( कदा ) किया हो ( वा ) अथवा ( कारिंदो ) दूसरों से कराया हो ( वा ) अथवा ( समणुमणिदो ) करने वालों की अनुमति की हो ( तस्स ) उससे होने वाले ( मे दुक्कडं ) मेरे दुष्कृत्य/पाय ( मिच्छा ) मिथ्या होवें । ____ भावार्थ-हे जिनेन्द्रदेव ! मैंने एकेन्द्रिय से पञ्चेन्द्रिय पर्यन्त किसी भी जीव को माग्ना, पीड़ा देना, एकदेश प्राणों का घात करना, विराधना करना आदि पाप-कार्यों को स्वयं किया हो, दूसरों से कराया हो अथवा करने वालों की अनुमोदना की हा तो मेरे पाप मिथ्या होवें ।
बद-समि-दिदिय रोयो, लोचावासय-पचेल-मण्हाणं । खिदि-सयण-मदंतवणं, ठिदि-भोयण-मेयभत्तं च ।।
अन्वयार्थ—( वद-समि-दिदियरोध: ) पाँच महाव्रत, पाँच समिति, पंचेन्द्रिय निरोध ( लोचो ) लोच करना ( आवासयं ) घट आवश्यक ( अचेलं )