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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
चेतन, अचेतन और मिश्र ऐसे तीन प्रकार के चरित्रह हैं। अथवा १४ प्रकार [ मिध्यात्व, क्रोधादि ४ व ९ नोकषाय ] अन्तरंग परिग्रह और १० प्रकार [ क्षेत्र, वास्तु आदि ] का बाह्य परिग्रह, इन समस्त परिग्रहों से विरक्त होना अपरिग्रह महाव्रत है।
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समिति – सम्यक् प्रवृत्ति को समिति कहते हैं। समिति पाँच हैं - १. ईर्ष्या २ भाषा ३ एषणा ४. आदाननिक्षेपण और ५ प्रतिष्ठापना या उत्सर्ग समिति ।
ईर्ष्या समिति — प्रयोजन के निमित्त चार हाथ आगे जमीन देखने जो वाले साधु के द्वारा दिवस में प्रासुकमार्ग से जीवों का परिहार करते हुए गमन हैं वह ईर्ष्या समिति हैं ।
भाषा समिति – चुगली, हँसी, असभ्य, अश्लील, कठोरता, परनिन्दा, आत्मप्रशंसा और विकथा आदि को छोड़कर अपने और पर के लिये हितरूप वचन बोलना भाषा समिति है ।
एषणा समिति – छयालीस दोषों से रहित शुद्ध, कारण से सहित, नवकोटि से विशुद्ध और शीत, उष्ण आदि में समान भाव से भोजन करना एषणा समिति है ।
आदाननिक्षेपण समिति - ज्ञान का उपकरण, संयम का उपकरण, शौच का उपकरण अथवा अन्य भी उपकरण को प्रयत्न पूर्वक ग्रहण करना और रखना आदाननिक्षेपण समिति है ।
प्रतिष्ठापना समिति --- एकान्त स्थान में जीव जन्तु रहित, दूरस्थित, मर्यादित, विस्तीर्ण और विरोध रहित स्थान में मल-मूत्रादि का त्याग करना प्रतिष्ठापना समिति है।
एषणा समिति के ४६ दोष - १६ उद्गम दोष, १६ उत्पादन दोष, १० एषणा के दोष, १ संयोजना दोष, १ अप्रमाण दोष, १. अंगार दोष और १ अधः कर्म दोष ४६ दोषरहित आहार शुद्धि ।
१६ उद्गम दोष – १. औद्देशिक- जो आहार नागादि देव या पाखण्डी साधु वा दीन हीनों के उद्देश्य से तैयार किया जाता है या दिगम्बर मुनियों को उद्देश्य करके बनाया गया आहार हो वह औद्देशिक कहलाता है ।
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