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________________ ४४ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका दुष्ट चेष्टाओं का ( काय दुच्चरियस्स ) शारीरिक दुष्चेष्टाओं का ( णाणाइचारस्स ) ज्ञानाचार के अतिचार का ( दंसणाइचारस्स ) दर्शनाचार के अतिचार का ( तवाइचारस्स) तपाचार के अतिचार का ( वीरियाइचार स ) वीर्याचार के अतिचार का चारा ) के अतिचार का निराकरण करता हूँ, ज्ञानादिक को निर्मल करता हूँ ( पंचह महव्याणं ) पाँच महाव्रतों का ( पंचण्हं समिदीण ) पाँच समिति का ( तिण्ह गुत्तीणं ) तीन गुत्तियों का ( छण्ह आवासयाणां ) छह आवश्यकों का ( छण्हं जीवणिकायाणं ) छह काय के जीवों की ( विराहणाए ) विराधना में (पील) पीड़ा अर्थात् आगमविरुद्ध प्रवृत्ति करके व्रतों की खंडना (कदो वा कारिदो वा ) मैंने स्वयं की हो, करवाई हो ( कोरंतो वा समणुमणिदो ) या करने वालों की अनुमोदना की हो ( तस्स मे ) तत्संबंधी मेरे ( दुक्कड़ ) दुष्कृत्य ( मिच्छा ) मिथ्या हों । इसलिये ( पडिक्कमामि ) मैं प्रतिक्रमण करता हूँ । भावार्थ – हे भगवन् ! मैं मानसिक, वाचनिक, कायिक अतिचार, अनाचार का प्रतिक्रमण करता हूँ। पंचाचार में लगे अतिचार का निराकरण करता हूँ और पाँच महाव्रत, पाँच समिति, तीन गुप्ति आदि व्रतों की खंडना मैंने की हो, कराई हो या अनुमोदना की हो तो तत्संबंधी मेरे पाप मिथ्या हो । ईर्यापथ गमनागमन दोषों की आलोचना पडिक्कमामि भंते! अड़गमणे, णिग्गमणे, ठाणे, गमणे, चंक्रमणे, उवत्तणे, आठट्टणे, पसारणे, आमासे, परिमासे, कुइदे, कक्कराइदे, चलिदे, णिसणे, सवणे, उष्वट्टणे, परिचट्टणे, एइंदियाणं, बेइंद्रियाणं, तेइंदियाणं, चउरिंदियाणं, पंचिंदियाणं, जीवाणं, संघट्टणाए, संघादणाए, उद्दावणाए, परिदावणाए, विराहणाए, एत्थ मे जो कोई राइयो ( देवसियो) अदिक्कमो, वदिक्कमो, अइचारों, अणाचारो तस्स मिच्छा मे दुक्कडं । अन्वयार्थ --( भंते ) हे भगवन् ! ( अइगमणे ) अति वेग से गमन में (गिम) निर्गमन में गमन क्रिया के प्रारंभ में ( ठाणे ) स्थान में स्थिति क्रिया में (गमणे) गमन में ( चंक्रमणे ) व्यर्थ परिभ्रमण करने में (उत्तणे ) उद्वर्तन में ( आउट्टणे ) हाथ और पैरों को संकुचित
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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