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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
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(हत्थिवालिय- सहाए ) हस्तिपालक राजा की सभा में यह एक ऐतिहासिक राजा हुआ हैं जिसने अपने राज्य में बड़ी भारी सभा करके जैन धर्म के उस्थान के लिये बहुत अच्छा कार्य किया था । ( जाओ अण्णाओ काओ वि ) और भी जो कोई ( णिसीहियाओं ) निषिद्धिका स्थान हैं ( जीवलोयम्मि ) अढाई द्वीप और दो समुद्री में ( इसिप भार तल गयाणं ) ईषत्प्राम्भार मोक्ष शिला पर स्थित ( सिद्धाणं ) सिद्धों की ( बुद्धाणं ) बुद्धों को (कम्मचक्क - मुक्काणं ) ज्ञानावरणादि कमों से रहित ( णीरयाणं ) पाप रहित ( णिम्पलाणं ) भावकर्म से रहित निर्मल ( गुरु आइरिय उवज्झायाणं ) गुरु, आचार्य, उपाध्याय ( पव्वत्तित्थेरतुल्यराणं । प्रवर्तक स्थविर और कुलकर (य) और ( चडवण्णो समणसंघों ) चार प्रकार के ऋषि, मुनि, यति अनगार आदि चतुर्विध संघ ( दंससु भरहेरावएस ) भरत एरावत दस क्षेत्रों में ( पंचसुमहाविदेहेसु) पाँच विदेह क्षेत्रों में ( लोए) और मनुष्य लोक में ( जे साहवो ) जो साधु ( संजदा ) संग्रमी ( तवसी ) तपस्वी हैं (एदे ) ये सब ( मम ) मेरा ( पवित्तं मंगलं ) पवित्र मंगल करें। ( एदे ) इनको (अहं) मैं ( विशुद्धो भावदो ) विशुद्ध भाव से (सिरसा) मस्तक झुकाकर ( सिद्धे ) सिद्धों को ( अहिवंदिऊण ) नमस्कार करके ( मत्थयम्मि अंजलि ) मस्तक पर अंजली ( काऊण ) रखकर ( तिविहं ) त्रिविध ( तियरणसुद्धा ) मन-वचन-काय की शुद्धि से (गमस्सामि ) नमस्कार करता हूँ। ( मंगलं करेमि ) मैं मंगल कामना करता हूँ ।
मन-वचन- काय द्वारा दोषों की आलोचना
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पक्किमामि भंते! रायस्स ( देवसियस्स) अड़चारस्स अणाचारस्स, मण दुच्चरियस्स, धचि दुच्चरियल्स, काय दुच्चरियस्स, णाणाइचारस्स, दंसणाइचारस्स, तवाइचारस्स, वीरिथाइचारस्स, चारिताइचारस्स, पंचपहं- महष्वयाणं, पंचण्हं समिदीणं, तिपहं-गुत्तीणं, छपहं आवासवाणं, छण्हं जीवणिकायाणं, विराहणाए, पील- कदो वा, कारिदो था, कीरंतो वा, समणु- मण्विादो तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।
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अन्वयार्थ - ( भंते ) हे भगवन् ! ( राइयस्स / देवसियस्स ) रात्रिकदेवसिक ( अइचारस्स) अतिचार का ( अणाचारस्स ) अनाचार का ( मणदुच्चरियस्स ) मानसिक दुष्ट चेष्टाओं का ( वचिदुच्चरियस्स ) वाचनिक