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त्रिमल लान प्रबोधिनी टीका
४५ करने में ( पसारणे ) हाथ-पैर पसारने में ( आमासे ) आमर्श में-नियत शरीर के प्रदेशों को छूने में ( परिमासे ) परिमर्श में---सर्वशरीर के स्पर्श करने में ( कुइदे ) कुत्सित में-स्वप्न में बड़बड़ करने में ( कक्कराइदे ) दाँतों को कटकटाने में या अत्यन्त कर्कश शब्द करने में या निद्रा में दाँत कटकटाने में ( चलिदे ) चलने में---गमन के समय शरीर की हलनचलन करने में ( णिसण्णे ) बैठने में ( सयणे ) शयन में सोने में ( उच्चट्टणे ) उद्भवन में सोकर जागने में { परियट्टणे ) पसवाड़ा फेरने में [ आदि क्रियाओं में ] ( एइंदियाणं ) एकेन्द्रिय ( बेइंदियाणं ) दो इन्द्रिय ( तेइंदियाणं ) तीन्द्रिय ( चउरिदियाणं ) चतुरिन्द्रिय ( पंचिंदियाणं ) पंचेन्द्रिय ( जीवाणं ) जीवों का ( संघट्टणाए ) मैने परस्पर संघर्षण करके मर्दन किया हो ( संघादणाए ) इकट्ठे किये हों ( उद्दवणाए ) संताप उपजाया हो ( परिदावणाए ) परितापन किया हो ( विराहणाए ) विराधना की हो ( एत्थ ) इस प्रकार ( मे ) मेरी ( राइओ-देवसिओ ) रात्रिक-दैवसिक क्रियाओं में ( जो कोई ) जो भी कोई ( अदिक्कमो ) अतिक्रम ( वदिक्कमो ) व्यतिक्रम( अइचारो ) अतिचार ( अणाचारो ) अनाचार हुआ हो ( तस्स मे दुक्कडं ), तत्संबंधी मेरे दुष्कृत ( मिच्छा ) मिथ्या हों अर्थात् तज्जनित मेरे पाप मिथ्या होवें । इसलिए ( पडिक्कमामि ) मैं प्रतिक्रमण करता हूँ । ईर्यापथ ( गमनागमन संबंधी दोषों की ) दूसरी आलोचना
पडिक्कमामि भंते ! इरियावहियाए, विराहणाए, उसमुहं चरतेण वा, अहोमुहं चरंतेण वा, विदिसिमुहं चरतेण वा, दिसिमुहं चरतेण वा, विदिसिमुहं चरंतेण वा, पाणचंकमणदाए, वीयचंकमणदाए, हरिय चंकमणदाए, उत्तिंग-पणय-दय-मट्टिय-मक्कडय-तन्तु-संताणुचंकमणदाए, पुढवि-काइय-संघट्टणाए, आउ-काइय-संघट्टणाए, तेजकाइय-संघट्टणाए, वाउ काइय-संघट्टणाए, वणण्फदि-काइय-संघट्टणाए, तसकाइय-संघट्टणाए उद्दावणाए, परिदावणाए, विराहणाए, इत्थ मे जो कोई इरियावहियाए, अइचारो, अणाचारो तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।
अन्वयार्थ---( भंते ) हे भगवन ! ( इरियावहियाए ) ईर्या समिति की ( विराहणाए ) बिराधना मे ( उद्दमुह चरंतेण ) ऊँचा मुंह करके चलने में ( वा ) अथवा ( अहोमुहं चरतेण ) नीचा मुँह करके चलने में ( वा )