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________________ ४१९ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका ४१९ भगवान वासुपूज्य की स्तुति श्रीवासुपूज्यभगवान्, शिवासु पूजासु पूजितस्त्रिदशानाम् । चम्पायां दुरित- हरः, परमपदं प्रापदापदा-मन्तगतः ।।३०।। अन्वयार्थ ( शिवासु पूजासु ) शोभा को प्राप्त, कल्याणकारी पञ्चकल्याणक रूप पूजाओ में ( त्रिदशानां पूजितः ) इन्द्रों व देवों से पूजा को प्राप्त ( श्रीवासुपूज्य भगवान् ) अन्तरङ्ग बहिरङ्ग लक्ष्मी के स्वामी वासुपूज्य भगवान् ( आपदाम् अन्तगतः ) विपत्तियों के अन्त को प्राप्त हो, ( दुरितहर: ) पापों का क्षय करते हुए ( चम्पायाम् ) चम्पापुरी में मन्दारगिरि पर्वत से ( परमपदं प्रापत् ) परम पद/मुक्त अवस्था को प्राप्त हुए । भावार्थ-अतिशय शोभासम्पन्न सर्व कल्याणकारी गर्भआदि पञ्चकल्याणकपूजाओं में देवों के परिवार के द्वारा पूजित, १०० इन्द्रों से वन्दित, श्री प्रथम बालयति वासुपूज्य भगवान् संसार के समस्त दुखों का अन्त करते हुए, अष्टकर्मों का अतिशय क्षय करके चम्पापुर में मन्दारगिरि पर्वत से परमोत्कृष्ट सिद्ध पद को प्राप्त हुए | नेमिनाथ स्वामी की स्तुति मुदितमतिबलमुरारि-प्रपूजितो जित कषायरिपुरथ जातः । वृहदूर्जयन्त-शिखरे, शिखामणिस्त्रिभुवनस्य-नेमिभगवान् ।।३१।। ___ अन्वयार्थ ( मुदित-मति-बल-मुरारि-प्रपूजित: ) बलदेव और श्रीकृष्ण ने जिनकी प्रसन्नचित्त हो पूजा की है ( च ) और ( जित कषाय रिपुः ) कषायरूपी शत्रुओं को जिन्होंने जीत लिया है ऐसे ( नेमिः भगवान् ) नेमिनाथ भगवान् ( वृहत्-उर्जयन्त-शिखरे ) विशाल गिरनार पर्वत के शिखर पर ( त्रिभुवनस्य शिखामणिः जातः ) तीन लोक के शिखामणि हुए अर्थात् उत्तम मुक्तिपद को प्राप्त हुए। भावार्थ-राजा समुद्र विजय के पुत्र नेमिनाथ भगवान् थे तथा उनके छोटे भाई वसुदेव के पुत्र बलराम और श्रीकृष्ण थे । बलराम और श्रीकृष्ण, बलभद्र व नारायण पद के धारी थे । नेमिनाथजी के ये चचेरे भाई थे। आयु में भी नेमिनाथ जी से बड़े थे तथापि बलराम और श्रीकृष्ण अपने कुल में तीर्थंकर का जन्म हुआ है यह विचार कर सदा नेमिनाथ जी
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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