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________________ ४२० विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका को देख प्रसन्नचित्त रहते थे। तथा केवलज्ञान प्राप्ति के पश्चात् भी सदा उनकी पूजा-वन्दना किया करते थे । अर्थात् जो नेमिनाथ भगवान श्रीकृष्ण व बलराम से पूज्य थे। जिन्होंने कषायों को जीत लिया था ऐसे श्री नेमिनाथ भगवान् ऊर्जयन्त गिरनार/ रैवतक पर्वत के शिखर से मुक्ति को प्राप्त हुए। श्री महावीर स्वामी की स्तुति पावापुरवरसरसा, मध्यगतः सिद्धिवृद्धितपसा महसाम् । वीरो नीरदनादो, भूरि-गुणभार शोभणास्पद-सागण ।।३।। अन्वयार्थ—( सिद्धि-वृद्धि-तपसां महसां मध्यगतः ) सिद्धि-वृद्धितप और तेज के मध्य में स्थित ( नीरदनादः ) मेघ की गर्जनासम जिनकी दिव्यध्वनि का शब्द है ( भूरिगुणः ) अनन्त गुणों से युक्त ( वीर: ) अन्तिम तीर्थकर भगवान महावीर ने ( पावापुर वर सरसां मध्यगतः ) पावापुर के उत्कृष्ट सरोवर के मध्य में स्थित हो ( चारुशोभं ) उत्कृष्ट शोभा से युक्त ( आस्पदम् ) मुक्तिस्थल को ( अगमत् ) प्राप्त किया। भावार्थ-जो इच्छित कार्यों को पूर्ण करने में, उत्तमक्षमादि गुणों का उत्कर्ष करने में तथा अनशन आदि बारह महातपश्चरण करने में महान् होने से सिद्धि, वृद्धि और तेजपुञ्ज हैं जिनकी दिव्यध्वनि मेघों की गर्जना के समान है। जो अनन्त गुणों से युक्त हैं ऐसे वर्तमान शासन कालीन तीर्थकर महावीर पावापुरी उत्कृष्ट सरोवर में स्थित को उत्तम श्री शोभा सम्पन्न मुक्तिस्थल को प्राप्त हुए । अवशेष बीस तीर्थङ्करों की स्तुति सम्मदकरिवन-परिवृत-सम्मेदगिरीन्द्रमस्तके विस्तीर्णे । शेषा ये तीर्थकराः, कीर्तिभृतः प्रार्थितार्थसिद्धिमवापन् । ।३३।। अन्वयार्थ ( कीर्तिभृतः ) कीर्ति को धारण करने वाले ( शेषाः ये तीर्थंकरा: ) शेष जो बीस तीर्थंकर हैं वे ( विस्तीर्णे ) विशाल फैले हुए { सम्मद-करि वन परिवृत-सम्मेद-गिरीन्द्र मस्तके ) मदोन्मत्त हाथियों से युक्त वन से घिरे हुए सम्मेद गिरिराज के शिखर पर ( प्रार्थितार्थ-सिद्धि ) अभिलषित मोक्ष पुरुषार्थ की सिद्धि को ( अवापन् ) प्राप्त हुए ।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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