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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका तेषु महामाह-मुचितं प्रचुराक्षत-गन्ध-पुष्प-धूपै-र्दिव्यैः । सर्वज्ञ · प्रतिमाना- मप्रतिमानां प्रकुर्वते सर्व-हितम् ।। १४।। ___अन्वयार्थ-( आषाढ-कार्तिकाख्ये फाल्गुन मासे च ) आषाढ, कार्तिक
और फाल्गुन माह में ( शुक्ल पक्षे अष्टम्या: आरभ्य ) शुक्लपक्ष में अष्टमी से प्रारम्भ होकर के ( अष्टदिनेषु च ) और आठ दिनो में ( सौधर्म-प्रमुखविबुधपतयः ) सौधर्म इन्द्र को आदि लेकर समस्त इन्द्र ( भक्त्या ) भक्ति से ( तेषु ) उन ५२ अकृत्रिम चैत्यालयों में ( दिव्यः प्रचुर अक्षत गन्ध पुष्प धूपैः ) अत्यधिक मात्रा में दिव्य अक्षत, चन्दन, पुष्प और धूप से ( अप्रतिमानाम् ) उपमातीत ( प्रतिमानां ) प्रतिमाओं की ( सर्वहितम् ) सब जन हितकारी ( उचितं ) योग्य ( महामहं प्रकुर्वते ) महामह नामक जिनेन्द्र पूजा को रचाते हैं।
भावार्थ-एक वर्ष में अष्टाह्रिका पर्व तीन बार आता है-आषाढ़, कार्तिक व फाल्गुन मास में। तीनों अष्टाह्निका शुक्लपक्ष अष्टमी से प्रारम्भ होकर पूर्णिमा पर्यन्त होती है । यह पर्व सब पर्यों से बड़ा पर्व है। इन दिनों में चतुर्निकाय के देव वहाँ जाकर दिव्य अक्षत-गन्ध-पुष्प और धूप आदि से उन अनुपम उपमातीत वीतरागमयी सुन्दर प्रतिमाओं की निरन्तर पूजा करते हैं। इनमें इतना विशेष है कि नन्दीश्वर द्वीप के चारों दिशा सम्बन्धी चैत्यालयों में चारों निकायों के इन्द्र अपने-अपने परिवार के साथ सर्वप्राणियों के लिये हितकर ऐसी विशाल महापूजा दो दो पहर तक करते हैं। तीनों अष्टाह्रिका पर्व में नंदीश्वर में निरन्तर पूजा होती रहती है। भेदेन वर्णना का, सौधर्मः स्नपन-कर्तृता-मापनः । परिचारक-भावमिताः, शेषेन्द्रा-रुन्द्र-चन्द्र-निर्मल-यशसः ।।१५।। मंगल-पात्राणि पुनस्तद्-देव्यो बिप्रतिस्म शुभ्र-गुणाढ्याः । अप्सरसो नर्तक्यः, शेष-सुरास्तत्र लोकनाव्यमधियः ।।१६।। ___अन्वयार्थ ( भेदेन वर्णना का ) विशेष रूप से अलग-अलग वर्णन क्या कहें ? ( सौधर्म: ) सौधर्म इन्द्र ( स्नपनकर्तृताम्-आपन्न: ) अभिषेक के कर्तृत्व को प्राप्त करता है ( रुन्द्र-चन्द्र-निर्मल यशस: शेष-इन्द्राः ) पूर्णमासी के चन्द्रमा के समान जिनका निर्मल यश फैला है ऐसे अन्य इन्द्र ( परिचारक भावम् इताः ) सहयोग भाव को प्राप्त होते हैं, ( शुभ्र-गुणाढ्या;