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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका नन्दीश्वर द्वीप के चैत्यालय नन्दीश्वर - जलधि- परिवृते धृत- शोभे । नन्दीश्वर - सद्वीपे चन्द्र- कर निकर - सन्निभ- रुन्द्र- यशो वितत - दिङ् - मही - मण्डलके । । ११ ॥ तत्रत्याखनदधिमुख- रतिकर पुरु- नग वराख्य पर्वत - मुख्याः । प्रतिदिश मेषा मुर्पार, त्रयां-दशेन्द्रार्चितानि जिन भवनानि ।। १२ । । - - अन्वयार्थ - ( चन्द्रकर-निकर- संनिभ- रुन्द्र- यशो - वितत-दिङमहीमंडलके ) चन्द्रमा की किरणों के समूह के समान सघन यश से जिसने समस्त दिशाओं का समूह और समस्त पृथ्वीमंडल व्याप्त कर दिया है अर्थात् जिसकी कीर्ति पृथ्वी पर फैल रही है ( नन्दीश्वर - जलधि - परिवृते ) नन्दीश्वर नामक सागर से घिरा हुआ ( धृतशोभे ) जो शोभा को धारण करने वाला है, ऐसे ( नन्दीश्वर सद्वीपे ) नन्दीश्वर नामक शुभ द्वीप में (प्रतिदिशं ) प्रत्येक दिशा में ( तत्रत्या अञ्चन दधिमुख - रतिकर पुरु नगवराख्य ) वहाँ के अञ्जनगिरि, दधिमुख, रतिकर इन श्रेष्ठ नाम वाले ( त्रयोदश पर्वत मुख्याः ) तेरह मुख्य पर्वत हैं । एषाम् उपरि ) इनके ऊपर ( इन्द्र अर्चितानि ) इन्द्रों से पूजित ( त्रयोदश-जिनभवनानि ) तेरह जिनभवन हैं । ४११ - भावार्थ - जिस नन्दीश्वर द्वीप को अवर्णनीय शोभा समस्त पृथ्वीमंडल में व्याप्त है, जिसकी कीर्ति समस्त दिशाओं में फैल रही हैं, नंदीश्वर नामक सागर से जो चारों ओर से घिरा हुआ है, जो अवर्णनीय शोभा से युक्त है। ऐसे नन्दीश्वर द्वीप की प्रत्येक दिशा में एक अञ्जनगिरि उसके चारों ओर चारों दिशाओं में वापिकाओं के मध्य दधिमुख और वापिकाओं के बाह्य कोणों पर आठ रतिकर सब मिलकर तेरह प्रमुख पर्वत हैं । एक दिशा में १३ पर्वत हैं अतः चारों दिशाओं में ५२ पर्वत हैं। इन ५२ पर्वतों पर इन्द्रों से पूजित ५२ अकृत्रिम चैत्यालय हैं। इन चैत्यालयों से यह द्वीप अत्यधिक शोभा को प्राप्त हो रहा है तथा इस द्वीप की अकृत्रिम मनहर प्रतिमाओं और विशाल चैत्यालयों का मधुर सरस यशोगान समस्त दिग्दिगन्त में व्याप्त हो रहा है। - आषाढ़ - कार्तिकाख्ये, फाल्गुनमासे च शुक्लपक्षेऽष्टम्याः । आरभ्याष्ट दिनेषु च, सौधर्म प्रमुख विबुधपतयो भक्त्या ।। १३ ।।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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