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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका तीन गुणव्रत व चार शिक्षाव्रतों का मंगल-पापनाशक उपदेश दिया। इस प्रकार महती धर्मप्रभावना आपके मंगल-विहार से स्थान-स्थान पर हुई । पद्मवनदीर्घिकाकुल विविध द्रुमखण्ड मण्डिते रम्ये । पावानगरोधाने व्युत्सर्गेण स्थितः स मुनिः ।।१६।। अन्वयार्थ ( स:मुनि ) वे केवलज्ञानी, स्नातक मुनि, सकल परमात्मा भगवान महावीर ( पावन-दीर्घिकाकुल-विविध-द्रुम-खंड-मण्डिते ) कमलवन समूह, वापिका/बावड़ी समूह और अनेक प्रकारों के वक्ष समह से शोभायमान ( पावानगरे उद्याने ) पावानगर के उद्यान में ( व्युत्सर्गेण स्थितः ) कायोत्सर्ग से स्थित हो गये। है। गया भावार्ण-..हाँ सकाल-परमात्मा पलान, नकुश, कुशील, निम्रन्थ और स्नातक ये पाँच प्रकार के मुनि उमास्वामी आचार्य ने तत्त्वार्थसूत्र में कहे उनमें केवलज्ञानी अरहंत देव स्नातक मुनि कहलाते हैं। ऐसे स्नातक मुनि भगवान महावीर ने कमलवन समूह से युक्त विशाल बावड़ी समूह और अनेक प्रकार के वृक्षों से सुशोभित पावानगर के उद्यान में कायोत्सर्ग धारण किया। कार्तिक कृष्ण स्यान्ते स्वातावृक्षे निहत्यकर्मरजः । अवशेषं संप्रापढ्यजरामरमक्षयं सौख्यम् ।।१७।। अन्वयार्थ-वे सकलपरमात्मा महावीर ( कार्तिक कृष्णस्य-अन्ते ) कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष के अन्त में ( स्वातौ ऋक्षे ) स्वाति नक्षत्र के काल में ( अवशेष कर्मरज: निहत्य ) सम्पूर्ण अघातिया कर्मों की प्रकृतियों का क्षय करके ( वि-अजरम् अमरम् अक्षयम् सौख्यम् ) जरा-मरण से रहित अक्षय, अविनाशी, शाश्वत सुख को ( संप्रापद् ) प्राप्त किया । भावार्थ--महावीर भगवान ने 'कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन जब चन्द्रमा स्वाति नक्षत्र पर स्थित था, नाम-गोत्र-आयु और वेदनीय इन अघातिया कर्मों का पूर्ण क्षय करके जन्म-जरा-मरण से रहित शाश्वत सुख रूप मुक्ति-पद को प्राप्त किया। १. किन्हीं आचार्यों के मत से कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी के अन्तिम काल/मुहूर्त मे महावीर भगवान ने सिद्धपद प्राप्त किया व उनका मोक्षकल्याण उत्सव अमावस्या को मनाया गया।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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