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________________ ३९० विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका छत्राशोको घोषं सिंहासन दुंदुभि कुसुमवृष्टिम् । वरचामर भामण्डलदिव्यान्यन्यानि चावापत् ।।१४।। अन्वयार्थ..वहाँ ( छत्र-अशोकौं ) दिव्य, सुन्दर छत्र, अशोक वृक्ष ( घोषं ) दिव्यध्वनि ( सिंहासन-दुन्दुभी ) सिंहासन और दुन्दुभि बाजे ( कुसुमवृष्टिं ) सुगन्धित सुमनों की वर्षा ( वर-चामर-भामण्डल-दिव्यानिअमान च) उत्तम चॅ५९, माना और अमअनेक दिव्य वस्तुओं को आपने ( अवापत् ) प्राप्त किया। भावार्थ- १ योजन के विशाल समवशरण में आप सुन्दर, देवोपनीत तीन मणिमय छत्रों, अशोक वृक्ष, सप्तभंगमयी दिव्यध्वनि, रतनजड़ित सिंहासन, दुन्दभि बाजे, सुगन्धित विविध पुष्यों की वर्षा, उत्तम प्रभामण्डल इन आठ प्रातिहार्यों तथा अन्य अनेक दिव्य, रम्य वस्तुएँ की शोभा को प्राप्त हुए थे । अर्थात् केवलज्ञान प्राप्त होते ही भगवान् १४ देवकृत अतिशय व दस केवलज्ञान के अतिशयों से मण्डित हो समवशरण सभा में शो'मायमान हो रहे थे। दसविधमनगाराणामेकादशधोत्तर तथा धर्मम् । देशयमानो व्यवहरंस्त्रिंशद्वर्षाण्यथ जिनेन्द्रः ।।१५।। अन्वयार्थ-( अथ ) वैभार पर्वत प्रथम दिव्य देशना के पश्चात् ( जिनेन्द्रः ) भगवान् महावीर स्वामी ने ( दशविधम् अनगारणाम् ) दस प्रकार के मुनि धर्म का ( तथा ) और ( एकादशधा उत्तरं धर्मं ) ग्यारह प्रकार---ग्यारह प्रतिमा के बारह आदि रूप श्रावक धर्म का ( देशयमानः ) उपदेश देते हुए ( त्रिंशद् वर्षाणि ) तीस वर्षों पर्यन्त ( व्यवहरत् ) विशेषरीत्या विहार किया। भावार्थ-~भगवान् महावीर की प्रथम दिव्य देशना विपुलाचल पर्वत पर खिरी । पश्चात् वहाँ से विभिन्न ग्राम, नगर, खेट, कर्वट, मटम्ब, घोष, आकर, द्रोण, पत्तन, संवाहन आदि में चतुर्विध संघ सहित तीस वर्षों तक विहार करते हुए अपने भव्य जीवों को मुनियों के उत्तमक्षमादि दस धर्मों का तथा प्रथम दर्शन प्रतिमा, व्रत प्रतिमा, सामायिक प्रतिमा, प्रोषध प्रतिमा आदि श्रावक धर्म की ११ प्रतिमाओं व बारह व्रतों, पाँच अणुव्रत,
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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