________________
विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका भैक्ष्यशुद्धि और सधर्मा विसंवाद । ब्रह्मचर्यव्रत की ५ भावनाएँ—१. स्त्रीरागकथाश्रवण त्याग २. तन्मनोहरांगनिरीक्षणत्याग ३. पूर्वरतानुस्मरण त्याग ४. वृष्येष्टरम त्याग और ५. स्वशरीरसंस्कार त्याग । परिग्रहत्याग व्रत को '५ भावनाएँ .. १. स्पर्शन २, रसना ३. ध्राग ४. चक्षु और ५. कर्ण । इन पञ्चेन्द्रियों को इष्ट लगने वाले विषयों से राग नहीं करना तथा अनिमा जाने वाले विष को हेप ही करना । ___ पच्चीस क्रियाओं में...१. सम्यक्त्व क्रिया २. मिथ्यात्व क्रिया ३. शरीरादि के द्वारा गमनागमन से प्रवृत्त होना रूप प्रयोग किया ४. समादान क्रिया ५. ईर्यापथ क्रिया ६. प्रादोषिकी क्रिया ७. कायिकी क्रिया ८. अधिकरण क्रिया ९. पारितापिकी क्रिया १०. प्राण्यातिपातिकी क्रिया ११. दर्शन क्रिया १२. स्पर्शन क्रिया १३. प्रात्ययिकी क्रिया १४. समन्तानुपात क्रिया १५. अनाभोग क्रिया १६. स्वहस्त क्रिया १७. निसर्ग क्रिया १८. विदारण क्रिया १९. आज्ञाव्यापादन क्रिया २०. अनाकांक्षा क्रिया २१. प्रारंभ क्रिया २२. पारिग्रहिकी क्रिया २३. माया क्रिया २४, मिथ्यादर्शन क्रिया २५. अप्रत्याख्यान क्रिया रूप पच्चास क्रियाओं में |
१८ हजार शीलों में। चौरासी लाख उत्तरगुणों में।
बारह प्रकार के संयम-पाँच इन्द्रिय और मन को वश करना तथा छह काय के जीवों की विराधना नहीं करना बारह प्रकार का संयमों में |
अनशन, अवमौदर्य, व्रतपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्तशय्यासन, कायक्लेश, प्रायश्चित्त, विनय, वैय्याव्रत, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग और ध्यान रूप बारह प्रकार के तपों में-१. आचारांग २. सूत्रकृतांग ३. स्थानाङ्ग ४.समवायाङ्ग ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति अंग ६. ज्ञातृकथाङ्ग ७. उपासकाध्ययनांग ८. अन्त:कृतदशांग ९. अनुत्तरौपपादिकदशांग १०. प्रश्न व्याकरणांग ११. विपाक सूत्रांग और १२. दृष्टिवाद अंग रूप बारह अंगों में।
१. उत्पादपूर्व २. आग्रायणी पूर्व ३. वीर्यानुवाद पूर्व ४. अस्तिनास्ति प्रवाद पूर्व ५. ज्ञानप्रवाद पूर्व ६. सत्य प्रवाद पूर्व ७, आत्मप्रवाद पूर्व ८. कर्मप्रवाद पूर्व ९. प्रत्याख्यान पूर्व १०. विद्यानुवाद पूर्व ११.