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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका ( राइओ ) रात्रि में ( देवसिओ ) दिन में ( अदिक्कमो ) अतिक्रम ( बदिक्कमो ) व्यतिक्रम ( अइचारो ) अतिचार ( अणाचारो) अनाचार ( आभोग ) आभोग ( अणाभोगो ) अनाभोग किया गया हो ( भंते ) हे भगवन् ! ( तस्स ) उन सब दोषों का ( पडिक्कमामि ) मैं प्रतिक्रमण करता हूँ ( मए पडिक्कंतं तस्स ) मैंने उन दोषों का प्रतिक्रमण किया है ( मे सम्मत्त मरणं ) मेरा सम्यक्त्व मरण ( पंडिय मरणं ) पंडितमरण ( वीरिय मरणं ) वीरमरण ( दुक्खक्खओ ) दुखों का क्षय ( कम्मक्खओ ) कमों का क्षय ( बोहिलाहो ) बोधि का लाभ ( सुगइगमणं ) सुगति गमन ( समाहि-मरणं ) समाधिमरण, ( जिन-गुण संपत्ति होउ मज्ज्ञां ) जिनेन्द्र गुणों की संपत्ति मुझे प्राप्त हो।
भावार्थ हे भगवन् ! रात्रि में या दिन में अपने व्रतों में जो भी दोष लगे हों, उन दोषों की आलोचनापूर्वक शुद्धि करने की इच्छा करता हूँ। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह, हिंसा, झूट, चोरी, कुशील, परिग्रह और रात्रिभोजन से रहित हैं। ईर्या, भाषा, एषणा, आदाननिक्षेपण
और प्रतिष्ठापन अथवा व्युत्सर्ग ये पाँच-पाँच व्रतों की रक्षिका समितियाँ हैं | तीन योगों की रक्षिका मन-वचन-काय तीन गुप्तियाँ हैं इस प्रकार १३ प्रकार के चारित्र में लगे दोषों की मैं आलोचना करता हूँ। और मति-श्रुत, अवधि, मन:पर्यय और केवलज्ञान रूप पाँच प्रकार के ज्ञानों में । चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन व केवलदर्शन इन चार प्रकार के दर्शनों में पाँच महाव्रत तथा छठा अणुव्रत ये मेरे व्रत हैं। ये व्रत सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय और यथाख्यात रूप ५ प्रकार चारित्रों में । क्षुधा, पिरासा, शीत, उष्ण, दंशमशक, नाग्न्य, अरति, स्त्री, चर्या, निषद्या, शय्या,
आक्रोश, वध, याचना, अलाभ, रोग, तृणस्पर्श, मल, सत्कार-पुरस्कार, प्रज्ञा, अज्ञान और अदर्शन इन बाईस परीघहों में ।
२५ भावनाओं में । अहिंसा-सत्य-अस्तेय-ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इन पाँच महाव्रतों की २५ भावनाएं हैं- अहिंसाव्रत की ५ भावनाएँवचनगुप्ति, मनोगुप्ति, ईर्यासमिति, आदाननिक्षेपण समिति और आलोकितपान भोजन । सत्यव्रत की की ५ भावनाएँ-क्रोध प्रत्याख्यान, लोभ प्रत्याख्यान, भय प्रत्याख्यान, हास्य प्रत्याख्यान और अनुवीचिभाषण । अचौर्यव्रत की ५ भावनाएँ-शून्यागारावास, विमोचितावास, परोपरोधाकरण,