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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका ( णवण्हं णो-कसायाणं ) नव प्रकार नौ कषायों को ( सोलसण्हं कसायाणं) सोलह प्रकार की १६ कषायों को ( अद्वहं कम्माणं ) आठ प्रकार के कर्मों को ( अट्टण्हं पवयण माउयाणं) आठ प्रकार प्रवचन मातृकाओं को { अट्ठण्हं सुद्धीणं) आठ प्रकार की शुद्धियों को ( सत्तण्हं भयाणं ) सात प्रकार के भयों को ( सत्तविह संसाराणं ) सात प्रकार के संसार को ( छण्हं जीवणिकायाणं ) छह प्रकार के जीवों के समूह को ( छण्हं आवासयाणं) छह प्रकार के आवश्यकों को ( पंचण्ह इंदियाणं ) पाँच प्रकार की इन्द्रियों को ( पंचण्हं महच्चयाणं ) पाँच प्रकार के महाव्रतों को ( पंचण्ह समिदीणं ) पाँच प्रकार समितियों को ( पंचण्हं चरित्ताणं ) पाँच प्रकार के चारित्र को ( चउण्हं सण्णाणं ) चार प्रकार की संज्ञाओं को ( चउण्हं पच्चयाणं) चार प्रकार के प्रत्ययों को ( चउण्हं उवसग्गाणं ) चार प्रकार के उपसर्गों को ( मूलगुणाणं ) मूलगुणों को ( उत्तर गुणाणं ) उत्तर- गुणों को ( दिवियाए ) दृष्टिक्रिया से ( पुट्टियाए ) पुष्टीक्रिया से ( पदोसियाए ) प्रादोषिकी क्रिया से ( परदावणियाए ) परतापनि क्रिया से ( से कोहेण वा ) क्रोध से अथवा ( माणेण वा ) मान से अथवा ( मायाए वा ) माया से अथवा ( लोहेण वा ) लोभ से अथवा ( रागेण वा ) राग से अथवा ( दोसेण वा ) द्वेष से अथवा ( मोहेण वा ) मोह से अथवा ( हस्सेण वा ) हास्य से अथवा ( भएण वा ) भय से अथवा ( पदोसेण वा ) प्रदोष अपराध से अथवा (पमादेण वा ) प्रमाद से अथवा ( पिम्मेण वा ) प्रेम से अथवा ( पिवासेण वा ) प्यास से अथवा ( लज्जेण वा ) लज्जा से अथवा ( गारवेण वा ) गारव से अथवा ( एदेसिं अच्चासणदाय ) इनमें अत्यासना को ( तिण्हं दंडाणं) तीन प्रकार के दंडों को ( तिण्हं लेस्साणं ) तीन प्रकार लेश्याओं को ( तिण्हं गारवाणं) तीन प्रकार के गारवों को ( तिषह अप्पसत्थसंकिलेस परिणामाणं ) तीन प्रकार के अप्रशस्त संक्लेश परिणामों को ( दोण्हं अट्ट-रुद्द-संकिलेस-परिणामाणं ) दो प्रकार के आर्त-रौद्र संक्लेश परिणामों को ( मिच्छाणाण ) मिथ्या-ज्ञान ( मिच्छा-दंसण ) मिथ्या दर्शन ( मिच्छा चरित्ताणं) मिथ्या चारित्र को ( मिच्छत्त-पाठग्गं ) मिथ्यात्व प्रयोग ( असंजम पाउग्गं ) असंयम प्रयोग ( कसाय-पाउग्गं ) कषाय प्रयोग ( जोग पाउग्गं ) योग प्रयोग ( अपाउग्ग-सेवणदाए ) अप्रयोजनीय सेवन से ( पाउग्गगरहणदाए ) प्रयोजनीय में गर्हा से ( एत्य ) इस प्रकार ( मे ) मेरे द्वारा