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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका ३६५ को सम्यक् प्रकार से प्राप्त होते हैं, हुए हैं । ( विभो ! ) हे भगवन् ! ( त्वत् पादद्वय-दैवतस्य ) आपका चरण युगंल ही जिसका आराध्य देवता है, ( भाक्तिकस्य ) आपका भक्त और भक्तितः ) भक्ति से जो ( शान्ति अष्टक ) शान्ति अष्टक का स्पष्ट उच्चारण कर रहा है, ऐसे ( मम ) मेरे ( दृष्टि ) सम्यक्त्व को ( कारुण्यात् ) दयाभाव से ( प्रसन्नां कुरु ) निर्मल करो । भावार्थ है शान्तिनाथ भगवन् ! इस पृथ्वी तल पर शान्ति के इच्छुक, समता भावी अनेकों प्राणी आपके चरण-कमलों के स्मरण, स्तवन, वन्दन से ही पूर्ण शान्ति, मुक्ति-सुख को प्राप्त हुए हैं। हे भगवन्! मैं आपका भक्त, आप ही मेरे एकमात्र आराध्य देवता हैं। मैं भक्तिपूर्वक इस “शान्त्यष्टक” शान्तिभक्ति के माध्यम से आपके महागुणों का स्पष्ट उच्चारण कर रहा हूँ । आप करुणा करके मेरे सम्यक्त्व को निर्मल कीजिये । आप अनुकम्पा कर मेरी दृष्टि को पवित्र कीजिये । शान्ति भक्तिः दोषकवृत्तम् शान्ति जिनं शशि निर्मल वक्त्रं, शीलगुण व्रत संयम पात्रम् । अष्टशतार्चित लक्षण गात्रं, नौमि जिनोत्तम मम्बुज नेत्रम् ।। ९ । · अन्वयार्थ - ( शशिनिर्मलवक्त्रं ) चन्द्रमा के समान निर्मल के मुख धारक ( शीलगुण-व्रत-संयम पात्रम् ) जो १८००० शील के स्वामी, गुणों के, व्रतों के व संयम पालक होने से पात्र हैं ( अष्ट- शत-अर्चितलक्षण - गात्रं ) जिनका शरीर १०८ लक्षणों से शोभा को प्राप्त है ( जिनोत्तम ) जिनों में श्रेष्ठ होने से जो तीर्थंकर हैं अथवा तीर्थंकर, चक्रवर्ती व कामदेव त्रिपदधारी होने से जो जिनोत्तम हैं ( अम्बुज नेत्रम् ) कमलसम सुन्दर, विशाल विकसित नेत्र से जो शोभित हो रहे हैं ऐसे ( शान्तिजिनं ) शान्तिनाथ भगवान को (नौमि ) मैं नमस्कार करता हूँ । मुख भावार्थ -- जो शान्तिनाथ भगवान् चन्द्रमा समान निर्मल वाले हैं जो १८ हजार शील, ८४ लाख गुण, व्रत, संयम के अधिनायक हैं, जिनका शरीर १०८ लक्षणों से शोभायमान हैं, जो जिनों में श्रेष्ठ तीर्थंकर
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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