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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका अन्वयार्थ-(प्रभापरिकर: ) किरणों के तेज समूह से युक्त ( भासयन् । दिशा-विदिशाओं को प्रकाशमान करने वाला ( श्रीभास्करः ) शोभायमान सूर्य ( यावत् ) जब तक ( न उदयते ) उदित न होता ( तावत् ) तब तक ( इह ) इस लोक में ( पङ्कजवनं ) कमल वन ( निद्रा-अतिभार-श्रमम् ) निद्रा की अधिकता से उत्पन्न खेद को अर्थात् मुकुलित अवस्था को ( धारयति ) धारण करता है, इसी प्रकार ( भगवन् ) हे भगवन् ( यावत् ) जब तक ( त्वत चरण-द्वयस्य) आपके दोनों चरण-कमलों के ( प्रसाद-उदय) प्रसाद का उदय ( न स्यात् ) नहीं होता ( तावत् ) तब तक ( एष जीवनिकाय ) यह जीवों का समूह ( प्रायेण ) प्राय: ( महत् पापं } बहुत भारी पाप को ( वहति) धारण करता है। भावार्थ-जिस प्रकार इस लोक में सर्व दिशाओं को प्रकाशित करने वाला शोभायमान ऐसा सूर्य जब तक उदय को प्राप्त नहीं होता है तब तक ही कमलों का समूह “मुकुलित, अविकसित" अवस्था के भार को वहन कर खेद को प्राप्त होता है, ठीक उसी प्रकार, हे भगवन् ! आपके चरणकमलों का कृपा प्रसाद जब तक इस जीव समूह को प्राप्त नहीं होता तब तक ही वह मिथ्यात्व, कषाय, अज्ञान आदि पापों के महामार को धारण करता है । अर्थात् जैसे सूर्य की किरणों का सम्पर्क पाते ही कमल विकसित हो जाता है, वैसे ही जिनसूर्य के चरण-कमलरूपी किरणों का सम्पर्क पाते ही भव्यप्राणियों का समूह मिथ्यात्व का वमन कर सम्यक्त्व को प्राप्त कर अनन्त संसार के कारण महापापों से बचकर मुक्ति को प्राप्त करता है। स्तुति का फल याचना शान्तिं शान्ति जिनेन्द्र शान्त, मनसस्त्वत्पाद पाश्रयात् । संप्राप्ताः पृथिवी तलेषु बहवः, शान्त्यर्थिनः प्राणिनः ।। कारुण्यान् मम भाक्तिकस्य च विभो ! दृष्टिं प्रसन्नां कुरु । त्वत्पादद्वय दैवतस्य गदतः, शान्त्यष्टकं भक्तितः ।। ८ ।। अन्वयार्थ ( शान्ति जिनेन्द्र ) हे शान्तिनाथ भगवन् ! ( पृथिवीतलेषु ) पृथ्वी तल पर ( शान्त मनसः ) शान्त मन के धारी ऐसे ( शान्त्यर्थिन: ) शान्ति के इच्छुक ( बहवः प्राणिनः ) अनेकों प्राणी ( त्वत्-पाद-पद्मआश्रयात् ) आपके चरण-कमलों के आश्रय से ( शान्ति सम्प्राप्ता: । शान्ति
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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