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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका अर्हत्सिद्धाचार्यो-पाध्यायाः सर्वसाधवः । कुर्वन्तु मंगलाः सारें, निर्माण परमशिया । . .!
अन्वयार्थ ( अर्हत्-सिद्ध-आचार्य-उपाध्यायः ) अरहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय ( सर्वसाधवः ) समस्त साधु ( सर्वे ) ये सभी ( मङ्गला: ) मङ्गल रूप है अत: ये पापों के नाशक हैं, ये मेरे लिये ( निर्वाण परमश्रियं ) मोक्षरूपी उत्कृष्ट लक्ष्मी को ( कुर्वन्तु ) करें । मुझे मुक्ति लक्ष्मी प्रदान करें।
भावार्थ-तीनों लोकों में मङ्गलरूप-पापों के नाश, सुख के प्रदायक, अर्हन्त-सिद्ध-आचार्य-उपाध्याय-साधु ये पञ्चपरमेष्ठी मेरे लिये उत्कृष्ट मुक्ति लक्ष्मी प्रदान करें।
आर्याछन्द सर्वाजिनेन्द्र चंद्रान्, सिद्धानाचार्य पाठकान् साधून् । रत्नत्रयं च वंदे, रत्नत्रयसिद्धये भक्त्या ।। ९ ।। .
अन्वयार्थ-मैं ( रत्नत्रयसिद्धये ) रत्नत्रय की सिद्धि के लिये ( सर्वान् जिनेन्द्र चन्द्रान् ) सभी अरहन्त भगवन्तों को ( सिद्धान्-आचार्य-पाठकान् ) सब सिद्धों को, सब आचार्यों, उपाध्यायों को ( साधून् ) सब साधुओं को ( च ) और ( रत्नत्रयं ) रत्नत्रय को ( भक्त्या ) भक्ति से ( वन्दे ) नमस्कार करता हूँ।
भावार्थ-मैं भक्तिपूर्वक समस्त अरहन्त-सिद्ध-आचार्य-उपाध्याय व साधुओं की तथा रत्नत्रय की वन्दना करता हूँ, मुझे रत्नत्रय की सिद्धि हो, रत्नत्रय की प्राप्ति हो।
पांतु श्रीपादपद्यानि, पञ्चानां परमेष्ठिनां । लालितानि सुराधीश, चूडामणि मरीचिभिः ।।१०।।
अन्वयार्थ-( पश्चानां परमेष्ठिनां ) पाँचों परमेष्ठियों के ( सुर-अधीश चूडामणि मरीचिभिः ) देवों के स्वामी इन्द्र के चूड़ामणि की किरणों से ( लालिनानि ) सेवित या सुशोभित ( श्रीपादपद्यानि ) श्री चरण-कमल ( पान्तु ) मेरी रक्षा करें।
भावार्थ-देवों का अधिपति इन्द्र भी जिनके चरण-कमलों की सेवा