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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका ३५५ पताका से सहित हैं ( ते ) वे ( साधुगणा: ) साधु समूह ( मां पान्तु ) मेरी रक्षा करें। भावार्थ- "दिगम्बर साधुओं का शरीर चैत्यगृह है" | जो सम्यग्दर्शनरूपी दीपक को प्रकाशित कर भव्य जीवों के अनादि-कालीन मिथ्यात्व के अन्धकार को नष्ट करने वाले हैं । जो साधुगण जीवादि नौ पदार्थों के ज्ञान से सम्पन्न हैं, जिनकी उत्कृष्ट चारित्र-रूपी ध्वजा लोक में फहरा रही है, उन साधुगण/ महासाधुओं की शरण में मैं जाता हूँ, ये साधुसमूह मेरी रक्षा । करें। जिन-सिद्ध-सूरि-देशक-साधु-वरानमल गुणगणोपेतान् । पञ्चनमस्कार-पदै-स्त्रि-सन्ध्य-मभिनौमि मोक्ष-लाभाय ।। ६ ।। अन्वयार्थ( अमल-गुणगण-उपेतान् ) निर्मल अनन्त गुणों से युक्त ( जिन-सिद्ध-सूरि-देशक-साधुवरान् ) अरहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय तथा उत्तम साधु पञ्च परमेष्ठियों को ( मोक्ष-लाभाय ) मोक्ष की प्राप्ति के लिये ( पञ्च-नमस्कम पदैः) पत्र नमस्कार पदों के द्वारा ( त्रिसन्ध्यम् ) तीनों संध्याओं में ( अभिनौमि ) नमस्कार करता हूँ। भावार्थ—जो अनन्त निर्मल गुणों से शोभायमान हैं ऐसे अरहन्तसिद्ध-आचार्य-उपाध्याय तथा उत्तम साधु इन पञ्च परमेष्ठियों को मैं मोक्ष की प्राप्ति के लिये णमोकार मन्त्र रूप पाँच पदों के द्वारा तीनों सन्ध्याओं में नमस्कार हूँ। अर्थात् अनन्त गुणों के समुद्र पश्चपरमेष्ठी की आराधना मुक्ति की प्राप्ति के लिये एकमात्र अमोघ कारण है। अनुष्टुप. एषः पञ्चनमस्कारः, सर्वपापप्रणाशनः ।। मंगलानां च सर्वेषां, प्रथम मंगलं भवेत् ।। ७ ।। अन्वयार्थ-(एष: पानमस्कार: ) यह पञ्चनमस्कार मन्त्र ( सर्वपाप प्रणाशन: ) सब पापों का नाश करने वाला है ( च ) और ( सर्वेषां मङ्गलानां ) सब मंगलों में ( प्रथमं मङ्गलं ) पहला मङ्गल माना गया है। भावार्थ—परमेष्ठी वाचक, अनादि निधन यह पञ्च नमस्कार मन्त्र सब पापों को नाश करने वाला, लोक में सब मंगलों में श्रेष्ठ प्रथम मंगल है।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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