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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका । तपों से शोभायमान ( प्रवृद्ध-पुण्यकाया: ) अत्यन्त वृद्धि को प्राप्त पुण्य के समूह से सहित और ( परम-आनन्द-सुख-ऐषिणः ) परमानन्द-अव्याबाध सुख की इच्छा करने वाले ( भदन्ताः ) भगवान् मुनिराज ( नः ) हम सबको ( अग्र्यं ) उत्कृष्ट ( साधि ) परम शुक्लध्यान ( दिशन्तु ) प्रदान करें। भावार्थ--उज ऋतु में आतापन बोग, वर्षा ऋतु में वृक्षमूल योग और शीतकाल में अभ्रावकाश योग को धारण करने वाले, बारह तपों से शोभायमान, पुण्य के कीर्तिस्तंभ, निराबाध सुख के इच्छुक सन्त, भगवन्त महामुनि हम सबको उत्कृष्ट परमशुक्ल ध्यान प्रदान करें | क्षेपकश्लोकानिः योगीश्वरान् जिनान्सर्वान्योगनि त कल्मषान् । योगैस्त्रिाभिरहं वंदे, योगस्कंध प्रतिष्ठितान् ।।१।। अन्वयार्थ-( योगनिधूत कल्मषान् ) धर्म्यध्यान शुक्लध्यानरूप योग से पापरुपी कल्मष को नष्ट करने वाले ( योगस्कंधप्रतिष्ठितान् ) धर्म्यध्यान शुक्लध्यान से प्रतिष्ठित/सुशोभित ( सर्वान् ) सभी ( जिनान् ) जिनों को ( योगीश्वरान् ) योगीश्वरों को ( अहं ) मैं ( त्रिभिः योगः ) मन-वचनकाय तीन योगों के द्वारा ( वन्दे ) नमस्कार करता हूँ। भावार्थ-धर्म-शुक्लध्यान रूप योग से सुशोभित इन्हीं योगों से पापरूपी कल्मष को नष्ट करने वाले सभी जिनों को, योगीश्वरों को मैं मनवचन-काय तीन योगों के द्वारा नमस्कार करता हूँ। प्रावृट्कालेसविद्युत्ापतितसलिले वृक्षमूलाधिवासाः । हेमंते रात्रिमध्ये, प्रतिविगतभयाकाष्ठवत् त्यक्तदेहाः ।।१।। ग्रीष्मे सूर्यासुतप्ता, गिरिशिखरगता: स्थानकूटान्तरस्थाः । ते मे धर्म प्रदधुर्मुनिगणवृषभा मोक्षनिःश्रेणिभूताः ।। २।। अन्वयार्थ-~-( प्रावृट्काले ) वर्षा काल में ( सविद्युत् पतितसलिले ) बिजली की कड़कड़ाहट के साथ जलवृष्टि होने पर ( वृक्षमूलाधिवासाः ) वृक्ष के नीचे अधिवास किया/योग धारण किया ( हेमन्ते रात्रिमध्ये) शीत/ठंडी/हेमन्त ऋतु में रात्रि के समय ( प्रतिविगतभया ) भय से रहित
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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