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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
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वाली तरङ्गों का विनाशीक समूह है। ऐसा अरहंत महानद पापरूपी कर्दम से हमारी रक्षा करें।
व्यपगत कषाय- फेनं राग-द्वेषादि दोष- शैवल रहितम् । अत्यस्त- मोह कर्दम-मतिदूर निरस्त मरण मकर- प्रकरम् ।। २७ ।।
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अन्वयार्थ - ( व्यपगत कषाय- फेनं ) जहाँ कषायरूपी फेन / झाग बिल्कुल क्षपित हो गया है। ( राग-द्वेषादि-दोष - शैवल-रहितं ) जो रागद्वेष आदि दोषरूपी काई से रहित हैं ( अति-अस्सा-मोह कर्दमं ) जिसमें मोहरूपी कीचड़ अत्यन्त रूप से नष्ट हो चुकी है और ( अतिदूर-निरस्तमरण-मकर-प्रकरम् ) जिससे मरणरूपी मच्छरों का समूह अत्यन्त दूर हटा दिया गया है।
भावार्थ - प्रकृति का नियम है फेन पानी को मलिन कर देता है । जैसे महानद के तीर्थ में फेन नहीं होते वैसे ही अरहंतदेवरूपी महानद में आत्मा का कलुषित करने वाले कषायरूपी फेन नहीं होते हैं ।
जिस प्रकार महानद के तीर्थ में शैवाल याने काई नहीं होती, क्योंकि शैवाल चिकना होता है यहाँ मनुष्य पैर फिसलने से गिर पड़ता है । उसी प्रकार अरहंतदेवरूपी महानद में राग-द्वेषरूपी शैवाल नहीं होते। रागद्वेषरूपी काई / दोष भी व्रतियों को अपने पद से / व्रत से गिरा देते हैं । अरहन्त रूपी महानद में राग-द्वेष की शैवाल कभी नहीं होती अतः वे अत्यन्त निर्मल, शुद्ध परम वीतरागी हैं।
जिस प्रकार महानद में कीचड़ नहीं होती अतः पानी स्वच्छ व निर्मल बना रहता है उसी प्रकार अरहन्तदेवरूपी महानद मोहरूपी कीचड़ से सर्वथा रहित है। मोह के अभाव में शुद्ध आत्मा १८ दोषों रूपी कर्दम से रहित सर्वज्ञ हो, समस्त पदार्थों को युगपत् जानने वाला केवलज्ञानी बनता है।
जिस प्रकार महानद मगरमच्छों से रहित होता है क्योंकि यदि मगरमच्छ हों तो स्नान करने वालों को पीड़ा उत्पन्न होगी उसी प्रकार भगवान अरहंत देवरूपी महानद में मरणरूपी मगरमच्छों का समूह नहीं होता, अरहंत देवरूपी महानद साक्षात् मुक्ति का कारण है। इस प्रकार अत्यन्त निर्मल अरहंतदेवरूपी महानद मेरे पापों को दूर करें।