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________________ २८६ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका __अन्वयार्थ ( शुक्ल-ध्यानस्तिमित-स्थित-राजत्-राजहंस-राजितम् ) जो जिनदेव/अरहन्तदेवरूपी महानद शुक्लध्यान में निश्चल होकर स्थित रहने वाले शोभायमान श्रेष्ठ मुनिराजरूपी राजहंस पक्षियों से सुशोभित है । ( स्वाध्याय-मन्द्रघोष ) जिसमें बार-बार होने वाले स्वाध्याय का गंभीर शब्द गुंजन कर रहा है । ( नानागुण-समिति-गुप्ति-सिकता-सुभगम् ) जो अनेक गुणों के समूह रूप समिति और गुप्ति रूप बालू से सुन्दर हैं। भावार्थ-.जैसे महानद के किनारे राजहंस पक्षियों से सुन्दर दिखाई देते हैं, वैसे ही अरहन्तदेवरूपी महानद के किनारे शुक्लध्यान में निश्चल रहने वाले श्रेष्ठ दिगम्बर सन्तों रूपी राजहंसों से शोभायमान हैं तथा जैसे महानद के किनारे पर पक्षियों का कलरव/गुजन होता है वैसे ही अरहन्त रूपी महानद में बार-बार होने वाले जिनेन्द्र कथित गंभीर आगम के मधुर शब्दों के स्वाध्याय का घोष/गुंजन होता रहता है । महानद के किनारे बालू से मनोहर दिखते हैं, इसी प्रकार अरहंतदेवरूपी महानद भी ८४ लाख उत्तरगुण, पाँच समिति, तीन गुप्ति रूपी बालू से अपूर्व शोभा को धारण करता हुआ भन्यों का मनोहारी बना हुआ है । ऐसा यह अरहंत देव रूपी महानद मेरे समस्त पापों का प्रक्षालन करने वाला हो। क्षान्त्यावर्त-सहस्रं सर्व-दया-विकध-कुसुम-विलसल्लतिकम् । दुःसह - परीषहाख्य - द्रुततर - रंग - त्तरंग भङ्गुर - निकरम् ।। २६।। ___अन्वयार्थ (क्षान्ति-आवर्त-सहस्रं ) उत्तम क्षमारूपी हजारों भँवरें जहाँ उठ रही हैं ( सर्वदया-विकच-कुसुम-विल-सल्लतिकम् ) जहाँ अच्छीअच्छी लताएँ सब जीवों पर दयारूपी खिले हुए पुष्पों से विशेष सुशोभित है ( दुःसह-परीषहाख्य-द्रुततरङ्गभङ्गुर-निकरम् ) जहाँ अत्यन्त कठिन परीषह नामक अतिशीघ्र चलती हुई तरङ्गों का क्षणभंगुर/विनश्वर समूह है। भावार्थ-जैसे महानद में भंवर उठा करती हैं, उसी प्रकार अरहंत देवरूपी महानद में उत्तम क्षमारूपी भंवर सदा उठते रहते हैं। महानद में लताओं पर फूल खिलते सुन्दर लगते हैं वैसे ही अरहंतदेवरूपी महानद में सुन्दर लताएँ सर्व जीवों पर दयारूपी खिले हुए पुष्पों से शोभायमान हो रही हैं। जैसे महानद में विनाशी लहरें/तरंगें उठती रहती हैं वैसे ही अरहंतदेवरूपी जिस महानद में अत्यन्त कठोर परीषह अतिशीघ्र चलने
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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