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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका द्युति- मण्डल- भासुरांग- यष्टीः, प्रतिमाऽप्रतिमा जिनोत्तमानाम् । भुवनेषु विभूतये प्रवृत्ता, वपुषा प्राञ्जलिरस्मि वन्दमानः ।। १२ ।। २७९ अन्वयार्थ - ( भुवनेषु ) तीनों लोकों में ( प्रवृत्ताः ) विराजमान / वर्तमान ( द्युतिमण्डल- भासुर अङ्ग यष्टी ) कान्ति मण्डल से देदीप्यमान शरीर यष्टि अर्थात् शरीररूपी लकड़ी से युक्त ( वपुषा अप्रतिमा: ) स्वरूप या तेज से उपमातीत ( जिनोत्तमानां ) जिनेन्द्रदेव की ( प्रतिमा ) प्रतिमाओं को ( विभूतये ) अनन्त चतुष्टय आदि रूप अर्हन्त देव की सम्पदा की प्राप्ति के लिये अथवा स्वर्ग, मुक्तिरूपी पुण्य सम्पदा की प्राप्ति के लिये ( वन्दमानः ) नमस्कार करता हुआ ( प्राञ्जलिः अस्मि ) मैं अञ्जलिबद्ध हूँ । भावार्थ - यहाँ आचार्य देव ने जिनेन्द्रदेव के शरीर को लकड़ी की उपमा दी है- "अङ्गयष्टी" । क्योंकि जिस प्रकार लकड़ो समुद्र से पार कर देती हैं, उसी प्रकार भगवान का शरीर भी संसारी प्राणियों को संसार - समुद्र से पार कर देता है। अतः भगवान का शरीर एक लकड़ी के समान है । जिनकी शरीररूपी लकड़ी प्रभामंडल से अत्यंत दीप्ति को प्राप्त हो रही है अर्थात् जिनेन्द्र प्रतिमाएँ प्रभामंडल से शोभा को प्राप्त हो रही हैं, संसार में जिनके तेज की कोई उपमा नहीं है, ऐसी जिन प्रतिमाओं को मैं अर्हन्त पद की विभूति के लिये अथवा स्वर्ग मोक्ष रूप अतुल सम्पदा की प्राप्ति के लिये नमस्कार करता हुआ अञ्जलिबद्ध हूँ । अर्थात् उन सब प्रतिमाओं को हाथ जोड़कर नमस्कार करता हूँ । विगतायुध - विक्रिया - विभूषाः, प्रकृतिस्था: कृतिनां जिनेश्वराणाम् । प्रतिमा: प्रतिमा - गृहेषु कान्त्याऽ- प्रतिमाः कल्मष- शान्तयेऽभिवन्दे ।। १३ ।। अन्वयार्थ - ( प्रतिमागृहेषु ) कृत्रिम अकृत्रिम चैत्यालयों में विराजमान / विद्यमान ( कृतिनां ) कृतकृत्य ( जिनेश्वराणाम् ) जिनेन्द्र भगवान् की ( विगतआयुध विक्रिया - विभूषा : ) अस्त्र रहित, विकार रहित और आभूषण से रहित ( प्रकृतिस्था: ) स्वाभाविक वीतराग मुद्रा में स्थित ( कान्त्या अप्रतिमाः ) दीप्ति से अनुपम ( प्रतिमा ) जिनेन्द्र प्रतिमाओं को, मैं ( कल्मष शान्तये ) पापों की शान्ति के लिये ( अभिवन्दे ) सन्मुख होकर अच्छी तरह से मनवचन-काय से नमस्कार करता हूँ ।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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