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________________ २७८ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका स्तुति करने का फल इति पञ्च-महापुरुषाः प्रणुता जिनधर्म-वचन-चैत्यानि । चैत्यालयाश्च विमलां दिशन्तु बोधिं बुध-जनेष्टाम् ।।१०।। अन्वयार्थ—( इति प्रणुता: ) इस प्रकार स्तुति किये गये ये ( पंचमहापुरुषाः ) पंच-परमेष्ठी भगवन्त ( जिनधर्म-वचन-चैत्यानि-चैत्यालयाः ) जिनधर्म, जिनागम, चैत्य और चैत्यालय (बुधजन-इष्टां ) ज्ञानी जनों/ गणधरों को इष्ट ( विमला ) निर्मल ( बोधिं ) ज्ञान ( दिशन्तु ) देवें। भावार्थ--इस प्रकार मैंने अरहंत-सिद्ध-आचार्य-उपाध्याय- साधुजिनधर्म-जिनागम, जिन-प्रतिमा और जिनालयों की वन्दना की। ये सब मेरे लिये अत्यन्त निर्मल, बुद्धिमानों को भी इष्ट ऐसी रत्नत्रय निधि प्रदान करें। ३. जिन-प्रतिमा-स्तवनम् कृत्रिम अकृत्रिम जिन प्रतिमाओं की स्तुति वियोगिनी छन्दः अकृतानि कृतानि-चाप्रमेय-द्युतिमन्ति द्युतिमत्सु मन्दिरेषु । मनुजामर-पूजितानि वन्दे, प्रतिबिम्बानि जगत्रये जिनानाम् ।।११।। ___अन्वयार्थ ( जगत्त्रये ) तीनों लोकों में ( मनुज अमर-पूजितानि ) मनुष्य व देवों से पूज्य ( अप्रमेय द्युतिमत्सु मन्दिरेषु ) अप्रमित कान्ति से युक्त जिनालयों में ( जिनानां ) जिनेन्द्रदेवों की ( अकृतानि-कृतानि ) अकृत्रिम व कृत्रिम ( अप्रमेयधुतिमन्ति ) अपरिमित कान्ति से युक्त ( प्रतिबिम्बानि ) प्रतिमाओं को ( वन्दे ) मैं नमस्कार करता हूँ। भावार्थ तीनों लोकों में-अधोलोक में ७ करोड़ ७२ लाख, मध्यलोक में ४५८ व ऊर्ध्वलोक में ८४ लाख ९७ हजार २३ इतने प्रमाणातीत कान्ति से युक्त अकृत्रिम जिनालय हैं तथा असंख्यात कृत्रिम जिनालय हैं तथा उनमें अप्रमित कान्ति से युक्त वीतराग जिनबिम्ब विराजमान हैं, ये जिनालय व जिनबिम्ब मनुष्यो व देवों से भी पूज्य हैं | इनकी मैं पूज्यपाद आर्य वन्दना करता हूँ।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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