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________________ २५६ विमल ज्ञान प्रभोधिनी टीका सिद्धि इष्ट नहीं हैं ( निजगुणहतिः न ) ज्ञान-दर्शन आदि स्व गुणों का नष्ट हो जाना सिद्धि नहीं है । ( तत् ) क्योंकि आत्मा का अभाव और गुणों का नाश सिद्धि मानने वालों के यहाँ ( तपोभिः न युक्तेः ) तपश्चरण आदि की योजना नही बनती ( आत्मा अस्ति ) आत्मा है, ( अनादि बद्ध ) अनादिकाल से कर्मों से बद्ध है / कर्म सहित हैं ( स्वकृतज फलभुक् ) अपने द्वारा किये शुभ-अशुभ कर्मों के फल का भोक्ता है ( तत्क्षयात् ) कर्मों के क्षय हो जाने से ( मोक्षमार्गी ) मुक्ति को प्राप्त होता है, ( ज्ञाता - दृष्टा ) जाननेदेखने स्वभाव वाला है ( स्वदेह - प्रमिति ) अपने शरीर प्रमाण है ( उपसमाहार विस्तार धर्मा ) संकोच विस्तार स्वभाव वाला है ( श्रौव्योत्पत्तिव्ययात्मा ) उत्पाद, व्यय और भव्य रूप है तथा ( स्वगुण युत) अपने आत्मीय गुणों से सहित है | ( इतः अन्यथा ) इससे भिन्न मान्यता वालों के ( साध्यसिद्धिः न ) साध्य की सिद्धि नहीं हो सकती, मुक्ति की प्राप्ति नहीं हो सकती । भावार्थ – यहाँ सिद्धभक्ति में पूज्यपाद स्वामी ने अन्य दर्शनों की मान्यताओं का निराकरण करते हुए सिद्ध भगवान् के गुणों का सुन्दर चित्रण किया है---- बौद्ध दर्शन वालों का मत है कि तैल के क्षय हो जाने पर दीपक की लौ ऊपर नीचे इधर-उधर कहीं न जाकर वहीं समाप्त हो जाती है, वैसे ही कर्मों का क्षय / क्लेश का नाश हो जाने से आत्मा वही समाप्त हो होता है यही सिद्धि है । इस कथन का निराकरण करने के लिये आचार्य देव ने लिखा है "नाभावः सिद्धिरिष्टा " | वैशेषिक व योग दर्शनों की मान्यता में बुद्धि, ज्ञान, सुख, इच्छा आदि विशेष गुणों का नाश सिद्धि है। इस कथन का निराकरण करते हुए आचार्य देव लिखते हैं तत्तपोभिर्न युक्तः ! क्योंकि कोई भी बुद्धिमान अपने आप का सर्वधा नाश करने के लिये अथवा अपने विशिष्ट गुणों का घात करने के लिये तपश्चरण आदि को नहीं करता । आत्मा के अस्तित्व के संबंध में विविध दर्शनों की विभिन्न मान्यताएँ हैं— चार्वाक आत्मा को पृथ्वी आदि से उत्पन्न मानते हैं। वे शरीर से
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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