________________
विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका करता हूँ। मेरे दुखों का, कमों का क्षय हो, मुझे बोधि की प्राप्ति हो, सुगति में गमन हो, समाधि-मरण हो, जिनेन्द्र गुणां की सम्पत्ति मुझे प्राप्त हो ।
दसण वय सामाइय पोसह सचित्तराइ भत्तेय ।
बंभारंभ परिग्गह अणुमणमुट्ठि देसविरदेदे ।।
एसायु जघा कहिद पडिमासु पमादाइकदादिचार सोहणटुं छेदोवट्ठावणं होउ मज्झं अरहंत सिद्ध आइरिय उवज्झाय सव्यसाहु सक्खियं सम्मत्तपुष्वगं सुव्यदं दिढव्वदं समारोहियं मे भवदु, मे भवदु, मे भवदु ।
अथ देवसिय ( राइय) पडिक्कमणाएसव्वादिचार विसोहिणिमित्तं पुवायरिय कमेण आलोयण श्री सिद्धत्ति पडिक्कमणपत्ति णिष्टिदकरण वीरभत्ति चउवीस-तित्थयर भत्ति कृत्वा तद्धीनाधिकरवादिदोष परिहारार्थ सकल दोष निराकरणार्थं सर्वमलातिचार विशुद्ध्यर्थ आत्मपवित्रीकरणार्थं समाधिभक्ति कार्योत्सर्ग करोमि । ___ मैं अब दिन या रात्रि में प्रतिक्रमण में लगे सर्व अतिचारों को विशुद्धि के निमित्त पूर्व आचार्यों के क्रम से आलोचना सिद्ध भक्ति, प्रतिक्रमण भक्ति, निष्ठितकरण वीर भक्ति, चतुर्विंशति भक्ति, करके उनमें हीनाधिक दोषों के परिहार के लिये, सकल दोषों का निराकरण करने के लिये सर्व मल व अतिचारों की शुद्धि के लिये, आत्मा को पवित्र करने के लिये समाधि भक्ति संबंधी कायोत्सर्ग को करता हूँ।
[ ९ बार णमोकार मंत्र का जाप करें]
अथेष्ट प्रार्थना प्रथमं करणं चरणं द्रव्यं नमः । अर्थ- प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग को नमस्कार हो।
शास्त्राच्यासो जिन-पति-नुतिः सङ्गतिः सर्वदाय:, सद्भूतानां गुण-गण-कथा दोष-वादो च मौनम् । सर्वस्यापि प्रिय-हित-बचो भावना चात्म-तत्त्वे, सम्पचन्तां मम भव-मवे यावदेतेऽपवर्ग: ।।१।।