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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका आदिनाथ से महावीरपर्यन्त २४ तीर्थकर देवों को मैं भक्तिपूर्वक नमस्कार ये लोकेऽष्ट-सहस्र-लक्षण-घरा; ज्ञेयार्णवान्तर्गता; ये सम्यग् भव- जाल- हेतु-मथना-श्चन्द्रावक तेजोऽधिकाः । ये साध्विन्द्र-सुराप्सरो-गण-शत-गीत-प्रणुत्यार्चिता. स्तान् देवान् वृषभादि- वीर-चरमान्, भक्ता नमस्याम्यहम् ।।२।। जो लोक में १००८ लक्षणों के धारक हैं, जो समीचीन कारण हैं, संसाररूपी जाल स्वरूप मिथ्यादर्शन, ज्ञान, चारित्र के नाशक हैं, चन्द्र और सूर्य से भी अधिक तेजस्वी हैं, गणधर, मुनिवर, इन्द्र, देव तथा सैकड़ों अप्सराओं के समूह से जिनकी स्तुति की गई है, पूजा की गई है उन वृषभनाथजी को आदि ले अन्तिम महावीरपर्यन्त २४ तीर्थंकर देवों को मैं भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। नाभेयं देवपूज्यं जिनवर- मजितं सर्व-लोक-प्रदीपम, सर्वज्ञं सम्भवाख्यं मुनि-गण-वृषभं नन्दनं देव-देवम् । कारिनं सुबुद्धिं वर-कमल-निभं पद्य-पुष्पाभि-गन्यम्, क्षान्तं दान्तं सुपार्श्व सकल शशि-निमं चंद्रनापान-मीडे ।।३।। विख्यातं पुष्पदन्तं भव-भय-मथनं शीतलं लोक नाथम्, श्रेयांसं शील-कोशं प्रवर-नर-गुरुं वासुपूज्यं सुपूज्यम् । मुक्तं दान्तेन्द्रियाचं विमल-मृषि-पर्ति सिंहसैन्यं मुनीन्द्रम्, धर्म सद्धर्म-केतुं शम-दम-निलयं स्तौमि शान्तिं शरण्पम् ।।४।। कुन्थु सिद्धालयस्वं श्रमण-पतिमरं त्यक्त-मोगेषु चक्रम, मल्लिं विख्यात-गोत्रं खचर-गण नुतं सुव्रतं सौख्य-राशिम् । देवेन्द्राय नमीशं हरि-कुल-तिलक नेमिचन्द्रं भवान्तम्, पार्थ नागेन्द्र-वन्धं शरणमहमितो वर्षमानं च भक्त्या ।।५।। __जिनों में श्रेष्ठ, देवों से पूज्य, नाभिराजा के पुत्र आदिनाथजी की, उत्कृष्ट दीप सम, त्रैलोक्यप्रकाशक अजितनाथ जिनेन्द्र की, त्रिकालवर्ती समस्त पदार्थों, उनके गुण व पर्यायों को युगपत् जानने वाले संभव जिनेन्द्र की, मुनियों के समूह में श्रेष्ठ देवाधिदेव अभिनन्दन की, कर्मशत्रुनाशक सुमति जिनेन्द्र की, कमलसम आभाव सुगंधित शरीर के धारक पद्म प्रभ
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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