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________________ ૨ ૩ ૨ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका हुए प्रतिदिन वीर भगवान् के दोनों चरण-कमलों को नमस्कार करते हैं वे संसार में निश्चित रूप से शोक-मुक्त होते हैं तथा विषम संसार अटवी से तिरकर मुक्त हो जाते हैं ।।३।। व्रतों का समूह जिसकी जड़ है, संयम जिसका स्कन्ध बंध है, यमनियम रूपी जल के द्वारा जो वृद्धि को प्राप्त है, १८ हजार शील जिसकी शाखा है, पाँच समिति रूपी कलिकाएँ भार हैं, तीन गुप्तियाँ जिसमें गुप्त प्रवाल हैं, मूल और उत्तरगुण श्रावक अपेक्षा ८ मूलगुण, १२ उत्तरगुण जिसके पुष्पों की सगंधी है, समीचीन तप चित्र-विचित्र पत्ते हैं जो मोक्षरूपी फल को देने वाला है, दयारूपी छाया समूह से युक्त है, शुभोपयोग में दत्तचित धिको के खंद को दूर करने में समर्थ हैं, पापरूपी सूर्य से उत्पन्न ताप को नाश करने वाला है वह चारित्ररूपी वृक्ष हमारे संसार रूप वैभव के नाश के लिये हो ॥४-५।।। सब तीर्थंकरों के द्वारा जिस चारित्र का आचरण किया गया तथा समस्त शिष्यों के लिये जिस चारित्र का उपदेश दिया गया उस सामायिक छेदोपस्थापना आदि पाँच भेद युक्त चारित्र को मैं पंचम यथाख्यातचारित्र की प्राप्ति के लिए नमस्कार करता हूँ ||६|| सब सुखों की खानि, हित को करने वाला धर्म है । बुद्धिमान लोग धर्म का संचय करते हैं। धर्म के द्वारा ही मोक्ष-सुख प्राप्त होता है। इसलिये उस धर्म को नमस्कार हो । संसारी प्राणियों का धर्म से भिन्न अन्य कोई दूसरा मित्र नहीं है। धर्म की जड़ दया है। मैं प्रतिदिन धर्म में मन को लगाता हूँ। हे धर्म, मेरी रक्षा करो ।।७।। अहिंसा संयम तप रूप धर्म मंगल कहा गया है जिसका मन सदा धर्म में लगा रहता है उसे देव मी नमस्कार करते हैं ।।८।। इच्छामि भंते ! वीरभत्ति काउस्सग्गं करेमि तत्थ देसासिआ, असणासिआ ठाणासिआ कालासिआ मुद्दासिआ, काउसग्गासिआ पणमासिआ आवत्तासिआ पडिक्कमणाए तत्थसु आवासएस परिहीणदा जो मए अच्चासणा मणसा, वचसा, काएण, कदो वा, कारिदो वा, कौरंतो वा, समणुमपिणदो तस्समिच्छा मे दुक्कडं ।।९।।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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