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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका ते वीतशोका हि भवन्ति लोके, संसार - दुर्गं विषमं तरन्ति । । ३ । । व्रत- समुदय. मूल: संकभ-स्कन्ध-धन्त्री, यम नियम- पयोभि वर्धितः शील- शाखः । समिति-कलिक - भारो गुप्ति- गुप्त प्रवालो, गुण- कुसुम सुगन्धिः सत् - तपश्चित्र पत्रः ।।४।। शिव- सुख- फलदायी यो दया छाययोन्द्रः, शुभजन - पथिकानां खेदनो दे समर्थः । दुरित रविज तापं प्रापयन्नन्तभावं, - सभव- विभव - हान्यै नोऽस्तुचारित्र - वृक्षः । । शा चारित्रं सर्व जिनैश्चरितं प्रोक्तं च सर्व शिष्येभ्यः । प्रणमामि पञ्च भेदं पञ्चम चारित्र लाभाय ।। ६ ।। धर्मः सर्व सुखाकरो हितकरो धर्मं बुधाश्चिन्वते, धर्मेणैव समाप्यते शिव-सुखं धर्माय तस्मै नमः | धर्माशास्त्यपरः सुहृद् भव-भृतां धर्मस्य मूलं दया, धर्मे चित्तमहं दधे प्रतिदिनं हे धर्म मां पालय ।।७।। धम्मो मंगल- मुक्किट्ठे अहिंसा संयमो तयो । देवा वि तस्स पणमंति जस्स धम्मे सया मणो ||८|| - - - 1 २३१ जो सम्पूर्ण चेतन-अचेतन विधिवत् द्रव्यों को और उनके गुणों को भूत-भावी - वर्तमान सम्पूर्ण पर्यायों में सदा सर्वकाल प्रतिसमय में एकसाथ जानता है अत: वह सर्वज्ञ कहे जाते हैं, उन सर्वज्ञ जिनेश्वर भगवान् महावीर के लिये नमस्कार हो ॥१॥ वीर भगवान् सभी सुर-असुरों तथा इन्द्रों से पूजित हैं, ज्ञानीजन वीर प्रभु का आश्रय लेते हैं, वीर भगवान् ने कर्मसमूह को नष्ट कर दिया है, वीर प्रभु को भक्ति से नमस्कार हो, वीरप्रभु से ही यह अनुपम तीर्थ प्रवृत्त हुआ हैं. वीर भगवान् का तप उत्कृष्ट हैं, वीर भगवान् में अन्तरंग - अनंत चतुष्टय और बाह्य में समवशरण आदि लक्ष्मी, तेज, कान्ति, यश और धैर्यता गुण विद्यमान है । हे वीर भगवान् आप ही कल्याणकारी हैं ||२॥ जो भव्य पुरुष ध्यान में स्थित होकर संयम व योग से सहित होते
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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