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________________ २२० विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका वा, अपांगकडणे था, कामतिदाभिणिवसेण वा, ओ भए देवसिओ ( राइयो ) अइचारो अणाचारी, मणसा, वचसा, कारण, कदो वा, कारिदो था, कीरंतो वा समणुमणिदो, तस्स मिच्छा मे दुक्कडं । । २-४ ।। हे भगनन् ! द्वितीय प्रतिमा के अब्रह्मविरति व्रत में लगे दोषों का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ । द्वितीय प्रतिमा के अन्तर्गत स्थूल ब्रह्मचर्य व्रत में मन से, वचन से, काय से, कृत, कारित, अनुमोदना से दिन या रात में दूसरों का विवाह किया हो, इत्वरिका ( व्यभिचारिणी स्त्री ) के घर आना-जाना रूप व्यवहार रखा हो, अपरिग्रहीत कुमारिका और परिग्रहीत वेश्या, सधवाविधवा स्त्रियों के साथ व्यवहार रखा हो, इनके साथ कामवासना से व्यवहार किया हो, काम सेवन के अंगों को छोड़कर अन्य अंगों से काम चेष्टा की हो, काम के तीव्र विकार से लोलुपता की हो अथवा घृणित परिणाम किये हों, कराये हो, अनुमोदना की हो इत्यादि व्रत संबंधी दोषों की मैं आलोचना करता हूँ मेरे व्रत सम्बंधी पाप मिथ्या हों, निरर्थक हों । पडिक्कमामि भंते! वद पडिमाए पंचमे थूलथडे परिग्गहपरिमाणवदेःखेतवत्थूणं परिमाणाइक्कमणेण वा, धणधण्णाणं परिमाणाइक्कमणेण वा, हरिण्णसुवण्णाणं परिमाणाइक्कमणेण वा दासीदासाणं परिमाणाइक्कमणेण वा, कुप्पभांडपरिमाणाइक्कमणेण वा, जो मए देवसिओ (राइयो ) अड़चारो मणसा, वचसा, कारण, कदो वा, कारिदो वा, कीरंतो वा समणुमणिदो, तस्स मिच्छा मे दुक्कडं । १२५ ।। हे भगवन्! मैं दूसरी प्रतिमा के अन्तर्गत परिग्रहपरिमाण अणुव्रत में लगे दोषों का प्रतिक्रमण करता हूँ। द्वितीय व्रत प्रतिमा में स्थूल परिग्रह परिमाण व्रत में क्षेत्र, मकान आदि के परिमाण का अतिक्रमण करने से, धन-गाय, बैल आदि धान्य, गेहूँ, चना आदि परिमाण का अतिक्रमण करने से चाँदी सोना के परिमाण का अतिक्रमण करने से या दासी दास के परिमाण का अतिक्रमण करने से या कुप्य वस्त्र, बर्तन आदि समस्त परिग्रह का अतिक्रमण करने से जो भी मेरे द्वारा दिन या रात्रि में मन से, वचन से, काय से, कृत, कारित, अनुमोदना से व्रत सम्बन्धी अतिचारअनाचार हुआ, वह सब मेरा पाप मिथ्या हो ।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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