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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका २१९ वा णे, सायारमंतभेएण वा, जो मए देवसिओ ( राइयो ) अइचारो, अणाचारो, मणसा, वचसा, काएण कदो वा, कारिदो वा, कीरतो वा समणुमण्णिदो, तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।। २-२।।। हे भगवन् ! दूसरी प्रतिमा मे स्थूल असत्य विरति त्याग व्रत में लगे दोषों का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ | मिथ्या उपदेश देने से, एकान्त में कही गई बात को प्रकट कर देने से, झूठे दस्तावेज आदि लिखने से, दूसरों की धरोहर हरण करने से, किसी के द्वारा इंगित चेष्टा से उसके अभिप्राय को प्रकट कर देने से इत्यादि प्रकार से स्थूलसत्याणुव्रत में दिन या रात में अतिचार-अनाचार मन, वचन, काय, कृत, कारित, अनुमोदना से हुए हों वे सभी व्रत संबंधी मेरे दुष्कृत निरर्थक हों। पडिक्कमामि भते ! वद पडिमाए तिदिये थूलयडे येणविरदिवदे थेणपओगेण पाथेणहरियादाणा, विरुवा इकापसा, पहियासानुल्लाणेण वा, पडिलवय ववहारेण वा, जो मए देवसिओ ( राइयो) अचारो, अणाचारो मणसा, वचसा, कायेण, कदो या, कारिदो वा, कीरतो वा, समणुमण्णिदो, तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।।२-३।। हे भगवन् ! मैं कृतकर्मों का प्रतिक्रमण करता हूँ अर्थात् पश्चात्ताप पूर्वक अपने व्रतों में लगे दोषों की आलोचना करता हूँ। दूसरी प्रतिमा के अन्तर्गत अचौर्याणुव्रत में दिन या रात्रि में मन-वचन-काय-कृत-कारितअनुमोदना से चोरी करने के प्रयोग को बतलाया हो [ अर्थात् स्वयं तो चोरी नहीं की परन्तु दूसरों को ऐसा व्यापार बताना जिससे वह चोरी करे ] चोर से अपहरण किये द्रव्य को ग्रहण किया हो, राज्य के विरुद्ध कार्य किया हो अर्थात् राज्य के विरुद्ध वस्तु, टिकिट आदि दिया हो, टेक्सचुराना आदि किया हो, राजा की आज्ञा का भंग किया हो, तोलने के बाट आदि कम या ज्यादा रखे हों और अधिक मूल्य की वस्तु में कम मूल्य की वस्तु मिलाकर दी हो, इस प्रकार व्रतसंबंधी मेरे सब अतिचार-अनाचार रूप दोष निरर्थक हों, मेरे व्रत संबंधी पाप मिथ्या हो। पडिक्कमामि भंते ! वद पडिमाए चढत्थे थूलपडे अबंभविरदिवदे:परविवाहकरणेण वा, इत्तरियागमणेण वा, परिग्गहिदा परिग्गहिदागमणेण
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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