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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका पडिक्कमामि भंते! दंसण पडिमाए, संकाए, कंखाए विदिगिंच्छाए, परपासंडपसंसणाए, पसंथुए, जो मए देवसिओ (राइयो ) अइचारी, अणाचारो, मणसा, वचसा, कारण, कदो वा, कारिदो वा, कीरंतो वा, समणुमणिदो, तस्स मिच्छा में दुक्कडं || १॥ २१८ हे भगवन् ! मैं व्रतों में लगे दोषों का पश्चात्तपपूर्वक प्रतिक्रमण करता हूँ । दर्शन प्रतिमा में शंका - जिनेन्द्रकथित मार्ग में शंका, कांक्षा - शुभाचरण पालन कर संसार शरीर भोगों की इच्छा रूप निदान, जुगुप्सा - धर्मात्माओं के मलिन शरीर को देखकर ग्लानि करना परपांखडियों की प्रशंसा - मिथ्या मार्ग व उनके सेवन करने वालों की प्रशंसा की हो, स्तुति की हो इस प्रकार मेरे द्वारा जो भी दिन या रात्रि सम्बंधी अतिचार, अनाचार मन से, वचन से, काय स्वयं किये हों, काराये हों, करने की अनुमोदना की हो तो तत्संबंधी मेरे समस्त दुष्कृत्य निरर्थक हों, मिथ्या हो । मैं समस्त दोषों की आलोचना करता हूँ, पश्चात्ताप करता हूँ । F पडिक्कमामि भंते ! वद पडिमा पढमे थूलयडे हिंसाविरदिवदेःवहेण वा, बंधेण वा, छेएण वा अइभारारोहणेण वा अण्णपाणणिरोहणेण था, जो मए देवसिओ (राइयो ) अइचारी, अणाचारो, मणसा, वचसा, कारण कदो वा, कारिदो वा, कीरंतो वा समणुमणिदो, तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।। २-१ ।। हे भगवन् ! मैं अपने कृत दोषों की आलोचना करता हुआ प्रतिक्रमण करता हूँ। दूसरी व्रत प्रतिमा में स्थूल हिंसा त्याग व्रत में वध से, या बंध से, छेदन या अतिभारारोपण या अन्नपाननिरोध करने से अर्थात् जीवों को मैंने बाँधा हो, मारा हो, अंगोपांग का छेदन किया हो, शक्ति से अधिक बोझा लादा हो और अन्न-पान निरोध किया हो। मेरे द्वारा रात्रि या दिन में व्रतों में अतिचार, अनाचार, मन-वचन-काय से किये गये हों, कराये गये हों अथवा करते हुए की अनुमोदना की गई हो तो वे सब दुष्कृत्य मेरे निरर्थक हों, मिथ्या हों । पडिक्कमामि भंते! वदपडिमाए विदिये धूलयडे असच्चविरदिवदेः - मिच्छोपदेसेण वा, रहो अन्धक्खाणेण वा, कूडलेह करणेण वा णायापहारेण
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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