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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका चौदह पूर्व के ज्ञाता, श्रुत समूह से युक्त, बारह प्रकार का तप और तपस्वी, ८४ लाख गुण और गुणवान, ऋद्धिधारी मुनि, तीर्थ और तीर्थकर, ज्ञान और ज्ञानी, सम्यग्दर्शन और सम्यग्दृष्टि जीव, संयम और संयमी, विनय और विनयवान, ब्रह्मचारी आश्रम और ब्रह्मचारी, गुप्ति और गुप्ति के धारक, बाह्य-आभ्यन्तर परिग्रह त्याग और त्यागी, समिति और समिति के धारक, स्वसमय-परसमय के ज्ञाता, क्षमा और क्षमागुण के धारक, क्षपक-श्रेणी और श्रेणी पर चढ़ने वाले बोधित बुद्धव कोष्ठबुद्धि के धारक तथा चैत्यवृक्ष और चैत्यालय ( कृत्रिम-अकृत्रिम ) आदि ये सब मेरे लिये मंगलदायक हों। उड्ड-मह-तिरियलोए, सिद्धायदणाणि णमंस्सामि, सिद्धणिसीहियाहो, अट्ठावय पव्यये, सम्मेदे, उज्जते, चपाए, पावाए, मज्झिमाए, हत्थिवालियसहाय, जाओ अण्णाओ काओवि णिसीहीयाओ जीवलोयम्मि इसिपम्भारतलगयाणं सिद्धाणं बुद्धाणं कम्मचक्कमुक्काणं णीरयाणं णिम्मलाणं गुरु आइरिय उवज्झायाणं पव्वतित्थेर कुलयराणं चउवण्णोय समण-संधोय, दससु भरहेरावएसु पंचसु महाविदेहेसु जो लोए संति साहवो संजदा तवसी एदे मम मंगलं पवित्तं एदेहं मगलं करेमि भावदो विसुद्धोसिरसा अहिवंदिऊण सिद्धेकाऊण अंजलिं मत्स्ययम्मि तिविहं तियरण सुद्धो । ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और मध्यलोक, सिद्धायतनों को नमस्कार है, निर्वाण-स्थलों को, अष्टापद कैलाश पर्वत, सम्मेद-शिखर, गिरनार, चम्पापुरी, पावापुरी, मध्यमा नगरी हस्तिपालक राजा की सभा में और भी जो कोई निषिद्धिका स्थान हैं, अढ़ाईद्वीप और दो समुद्रों में, ईषत्प्रागभार मोक्षशिला पर स्थित सिद्धों को, बुद्धों को, अष्टकर्मों से रहित, पापरहित, भाव कर्म मल से रहित निर्मल गुरु, आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, स्थविर और कुलकर तथा चार प्रकार के श्रमण संघ, ऋषि, यति, मुनि व अनगार, भरत ऐरावत दस क्षेत्रों में, पाँच विदेह क्षेत्रों में और मनुष्य लोक में जो साधु संयमी तपस्वी हैं ये सब मेरा पवित्र मंगल करें, इनको मैं विशुद्ध भाव से मस्तक झुकाकर सिद्धों को नमस्कार करके मस्तक पर अंजुली रखकर त्रिविध मन-वचन-काय की शुद्धि से नमस्कार करता हूँ इस प्रकार मैं मंगल करता हूँ।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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