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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका २२१ पडिक्कमामि भंते! वद पडिमाए पढमे गुणव्वदेः - उडवड़क्कमणेण वा, अहोवइक्कमणेण वा तिरियवइक्कमणेण वा, खेत्तवद्धिएण वा, अंतराधाणेण वा, जो मए देवसिओ ( राइयो ) अड़चारो, माणसा, वासा, काएण, कदो वा, कारिदो वा, कीरंतो वा समणुमणिदो, तस्स मिच्छा मे दुक्कई ।। २. - १।। M हे भगवन् ! मैं द्वितीय प्रतिमा के मध्य प्रथम गुणव्रत - दिग्बत में लगे अतिचार - अनाचार आदि दोषों का प्रतिक्रमण करता हूँ। दूसरा व्रत प्रतिभा में प्रथम गुणवत्त में ऊर्ध्वदिशा में गमन की सीमा उल्लंघन किया हो, अधोदिशा में गमन की सीमा का उल्लंघन किया हो, तिर्यक् दिशा में गमन की सीमा का उल्लंघन किया हो, सीमित क्षेत्र में वृद्धि की हो या दशोंदिशा संबंधी की गई मर्यादा को भूल गया हो इस प्रकार दिन या रात्रि में व्रतसंबंधी दोष अतिचार - अनाचार मन से, वचन से, काय से किया हो, कराया हो, या करने वालों की अनुमोदना की हो तो मेरा व्रत संबंधी दोष / पाप मिथ्या हो, निरर्थक हो । पडिक्कमामि भंते! वद पडिमाएविदिए गुणव्वदेः - आणयणेण का, विणिजोगेण वा, सद्दाणुवाएण वा, रूवाणुवाएण वा, पुग्गलखेवेण वा, जो मए देवसिओ (राइयो ) अइचारो मणसा, वचसा, कारण, कदो वा, कारिदो वा, कीरंतो वा समणुमणिदो, तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।।२-७-२।। हे भगवन् ! द्वितीय व्रत प्रतिमा में दूसरे गुणवत देशव्रत में लगे दोषों की विशुद्धि के लिये मैं प्रतिक्रमण करता हूँ । द्वितीय व्रतप्रतिमा गुणवत के भेद देशव्रत में मर्यादा के बाहर से वस्तु मँगाई हो, बाँधी गई सीमा से बाहर वस्तु भेजी हो, शब्दों के इशारे से मर्यादा के बाहर से अपना कार्य सिद्ध किया हो, रूप दिखाकर मर्यादा के बाहर से अपना कार्य सिद्ध किया हो, कंकर, पत्थर आदि फेंककर मर्यादा के बाहर अपना कार्य किया हो इस प्रकार मेरे द्वारा जो भी दिन या रात्रि में मन से, वचन से, काय से कृत, कारित, अनुमोदना से व्रतसंबंध अतिचार, अनाचार हुआ हो तो वह मेरा व्रत संबंधी पाप मिथ्या हो, निरर्थक हो ।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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