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________________ २१० विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका लोयस्सुजोय-यरे धम्मं तित्थंकरे जिणे वंदे । अरहंते कित्तिस्से चौबीसं चेव केवलिणो ।। २।। उसह-मजियं च वन्दे संभव-मभिणंदणं च सुमइंच। पठमप्पहं सुपासं जिणं च चंदप्पहं वन्दे ।।३।। सुविहिं पुष्फयंतं सीयल सेयं च वासुपुज्जं च । विमल-मणतं भयवं धम्मं संतिं च वंदामि ।।४।। कुंथु च जिण वरिंदं अरं च मल्लिं च सुब्धयं च णमि । बंदामिरिठ्ठ-णेमि तह पासं वड्डमाणं च ।।५।। एवं मए अभित्थुआविहुय-रय-मला-पहीण-जर-मरणा । चउवीसं पि जिणवरा तिस्थायरा में पसीयंतु ।।६।। किलिय वंदिय मड़िया दे लोगोनमा जिणा सिद्धा। आरोग्य-णाण-लाहं दितु समाहिं च मे बोहिं 11७।। चंदेहिं णिम्मल-यरा आइच्चेहिं अहिय-पया-संता । सायर मिव गंभीरा सिद्धा सिविं मम दिसंतु ।।८।। मैं जिनेन्द्र, तीर्थकर, केवली, अनन्तजिन, मनुष्यों में श्रेष्ठ, लोकपूज्य, कर्ममल से रहित महान् आत्माओं की स्तुति करता हूँ। लोक को प्रकाशित करने वाले, धर्मतीर्थ को करने वाले जिनदेव की मैं चन्दना करता हूँ। अरहंत परमेष्ठी, चौबीस भगवान और केवली जिनों का कीर्तन करता हूँ। मैं आदिनाथ, अजितनाथ, संभवनाथ, अभिनन्दनाथ, सुमतिनाथ, पद्मप्रभ, सुपार्श्वनाथ और चन्द्रप्रभ जिनों की वन्दना करता हूँ। सुविधिनाथ/पुष्पदन्त, शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ, वासुपुज्य, विमलनाथ, अनन्तनाथ, धर्मनाथ और शान्तिनाथ भगवान की मैं वन्दना करता हूँ। कुन्थुनाथ, अरनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुव्रतजी, नमिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर/वर्धमान जिनों की मैं वन्दना करता हूँ। इस प्रकार स्तुति किये गये चौबीस जिनेन्द्र, चौबीस तीर्थंकर जो कर्ममल से रहित हैं तथा जन्म-जरा-मरण से रहित हैं, मुझ पर प्रसन्न हों । कीर्तन, वंदन, पूजन किये गये ये लोक में उत्तम अरहंत, सिद्ध
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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