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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका २०५ वीरभक्ति, शान्ति चौबीस तीर्थंकरभक्ति, चारित्र आलोचना आचार्य, वृहद् आलोचना आचार्य, क्षुल्लक आलोचना आचार्यभक्ति को करके उनमें हीनाधिकत्व आदि दोषों की विशुद्धि के लिये समाधिभक्ति सम्बन्धी कायोत्सर्ग को मैं करता हूँ || १ || विशेष - [ इस प्रकार प्रज्ञापन कर ९ बार णमोकार मन्त्र का जाप करें ] समाधि भक्ति अथेष्ट प्रार्थना प्रथमं करणं चरणं द्रव्यं नमः शास्त्राभ्यासो जिन पति नुतिः सङ्गति सर्वदार्यैः, सद्वृत्तानां गुण - गण - कथा दोष वादे च मौनम् । सर्वस्यापि प्रिय हित वचो भावना चात्म-तत्त्वे, - - - सम्पद्यन्तां 11 - - " मम भव भवे यावदेते ऽपवर्ग ।। १ ।। तव पादौ मम हृदये मम हृदयं तव पदद्वये लीनम् । तिष्ठतु जिनेन्द्र ! तावद् यावन् निर्वाण सम्प्राप्तिः || २१ | अक्खर - पयत्य- हीणं मत्ता हीणं च जं मए भणियं । तं खमव णाणदेवय ! मज्झषि दुक्खक्खयं कुणउ । । ३ । । अंजलिका - इच्छामि भंते! समाहिभत्ति काउस्सग्गो कओ तस्सालोचेउं रयण त्तय सरूव परमप्प-ज्झाण लक्खणं समाहि- भत्तीए णिच्चकालं अच्चेमि, - पुज्जेमि, वन्दामि णमस्सामि, दुक्खक्खओ, कम्मक्खओ, बोहिलाहो, सुगड़-गमणं समाहि-मरणं, जिण गुण सम्पत्ति होदु मज्झं । - ( पश्चात् आचार्यदेव की सिद्धश्रुत-आचार्य भक्तिपूर्वक वंदना करें ) पाक्षिक प्रतिक्रमण समाप्त श्रावक प्रतिक्रमण संकल्प जीवे प्रमाद - जनिताः प्रचुरा: प्रदोषा, यस्मात्प्रतिक्रमणतः प्रलयं प्रयान्ति ।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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