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________________ १७२ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका के साथ क्रीडन, स्त्री के मुख आदि का राग भाव से अवलोकन ( णियमम्मि ) इनके नियमों में मैं ( द्विदो ) स्थित हूँ। जो ब्रह्मचर्य के घातक होने से मैं इन क्रियाओं से निवृत्त होता हूँ। इसलिये मैं ( चउत्थं ) चतुर्थब्रह्मचर्य ( वदमस्सिदो ) महाव्रत में आश्रय लेता हूँ। १. स्त्री-कथा त्याग, २. स्त्रीसंसर्ग त्याग, ३. स्त्री में हास्य त्याग, ४. स्त्री से क्रीडा त्याग और ५. स्त्री के अंगों का रागभाव से अवलोकन का त्याग, इन ब्रह्मचर्यव्रत की पाँच भावनाओं का व्रत निर्मल होता है। सचित्ताचित्त-दव्येसु बज्झ-मन्तरेसु य । परिग्गहादो विरदो पंचमं बदमस्सिदो ।।६।। अन्वयार्थ—( पंचमं वदमस्सिदो) पंचम परिग्रहत्याग महाव्रत का आश्रय लिया है जिसने ऐसा मैं ( सञ्चित्त अचित्त दव्वेसु ) सचित्त द्रव्यगाय, भैस, दासी-दास आदि द्रव्यों में, अचित्त-धन-धान्य आदि अचित्त द्रव्यों में, ( बज्झब्भंतरेसु ) और बाह्य-वस्त्र, आभरण आदि द्रव्य में तथा आभ्यन्तर-ज्ञानावरण, दर्शगवरणादि द्रव्यों में तथा { परिंग्गको ) घर, क्षेत्र आदि सभी बाह्य आभ्यन्तर २४ परिग्रहों में ( विरदो ) विरति अर्थात् त्याग करता हूँ । इस प्रकार सचित्त द्रव्य त्याग भावना, अचित्त द्रव्य त्याग भावना, बाह्य द्रव्य त्याग भावना, आभ्यन्तर द्रव्य त्याग भावना और सर्व परिग्रह त्याग भावना, इन पाँच भावनाओं के भाने वाले जीव के परिग्रह त्याग महाव्रत निर्मल होता है। घिदिमंतो खमाजुत्तो, झाण-ओग-परिद्विदो । परिसहाण उरं देत्तो उत्तमं बदमस्सिदो ।।७।। अन्वयार्थ---( धिदिमंतो ) धैर्यवान ( खमाजुत्तो ) क्षमावान् ( झाणजोग-परिट्ठिदो ) ध्यान और योग में अच्छी तरह से स्थित ( परीसहाणउरं देतो ) बावीस परीषहों को जीतने वाला महापुरुष ही ( उत्तम वदमस्सिदो) पाँच महाव्रत रूप उत्तम व्रतों का आश्रय लेता है। जो सारो सव्यसारेसु सो सारो एस गोयम । सारं झाणंति णामे ण सव्वं बुद्धोहिं देसिदं ।।८।। अन्वयार्थ-( गोयम ! ) हे गौतम ! ( सव्वसारेसु ) सभी सार वस्तुओं में ( जो ) जो ( सारो ) सार है ( सो ) वह ( सारो ) वह सार ( एस ) यह
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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