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________________ - --- -- --- - --- - १४२ -ब विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका जिनेन्द्र देव ने महाव्रतों का स्वरूप जैसा कहा है वह इस प्रकार है-- पढमे महव्वदे पाणादिवादादो वेरमणं, विदिए महव्वदे मुसावादादो वेरमणं, तिदिए, महबदे अदिण्णादाणादो वेरमणं, चउत्थे महव्यदे मेहुणादो वेरमणं, पंचमे महव्वदे परिग्गहादो वेरमणं, छठे अणुव्यदे राइ-भोयणादो वेरमणं चेदि । अन्वयार्थ- ( पढमे महव्वदे पाणादिवादादो वेरमणं ) प्रथम महाव्रत में प्राणानिपात प्राणों की हिंसा से विरक्ति { विदिए महव्यद मुसाबादादो बेरमणं ) द्वितीया महाव्रत में मृषावाद से विरक्ति ( तिदिए महत्वदे अदिण्णादाणादो वेरमणं ) तीसरे महानत में अदत्तादान से विरक्ति ( चउत्थे महव्वदे मेहुणादो वेरमणं ) चतुर्थ महाव्रत में मैथुन से/अब्रह्म से विरति ( पंचमे महव्वदे परिग्गहादो वेरमणं ) पञ्चम महाव्रत में परिग्रह से विरति (च) और ( छट्टे अणव्वदे राइ-भोयणादो वेरमणं इदि ) छठे अणुव्रत में रात्रिभुक्ति से विरक्ति इस प्रकार । भावार्थ-मुनियों को पहले अहिंसाव्रत में प्राणियों की हिंसा का त्याग, दूसरे सत्य महाव्रत में झूठ बोलने का त्याग, अचार्य महाव्रत में अदत्त वस्तु के ग्रहण का त्याग, चतुर्थ महाव्रत में अब्रह्म का त्याग और पंचम परिग्रह त्याग महाव्रत में सम्पूर्ण परिग्रह का त्याग करना चाहिये । अब प्रथम अहिंसा महाव्रत में मुनि के लिये सम्पूर्ण हिंसा से विरति को दिखाते हैं तत्थ पढमे महव्वदे सव्वं भंते ! पाणादिवादं पच्चक्खामि जावज्जीवं, तिविहेण-मणसा, वचसा, काएण, से एइंदिया वा, बे इंदिया वा, ते इंदिया वा, चउरिंदिया वा, पंचिंदिया वा, पुढवि-काइए वा, आऊ-काइए वा, तेऊ- काइए वा, वाऊ-काइए वा, वणफदि-काइए वा, तस-काइए वा, अंडाइए वा, पोदाइए वा, जराइए वा, रसाइए वा, संसेदिमे वा, समुच्छिमे था, उम्भेदिमे वा, उववादिमे वा, तसे वा, थावरे वा, बादरे वा, सुहुमे वा, पाणे वा, भूदे वा, जीवे वा, सत्ते वा, पज्जत्ते वा, अपज्जत्ते या, अविचउरासीदि-जोणि-पमुह-सद-सहस्सेसु, णेव सयं पाणादिवादिज्ज,
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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