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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका ऋषि, बुद्ध, वर्धमान, महावीर, महतिमहावीर जिन को नमस्कार हो । अर्थात् जन्म से ही मतिश्रुत, अवधि ज्ञानत्रयधारक, पूजा के अतिशय को प्राप्त भगवान् महावीर, वर्धमान, बुद्ध और ऋषि को नमस्कार हो। ___ऋषि-महावीर भगवान् प्रत्यक्षवेदी थे और ऋद्धिधारक भी थे, अत; वे ऋषि थे।
बुद्ध हेय-उपादेय के विवेक से सम्पन्न होने से महावीर भगवान् बुद्ध थे। इस प्रकारजस्संतियं धम्म - पंह प्रियच्छे, तस्सतियं वेणश्य पजे। काएण वाचा मणमा वि णिच्चं,सरकारए तं सिर-पंचमेण ।।१।।
अन्वयार्थ---( जस्संतियं ) जिन भगवान् के समीप ( धम्म-पहं ) धर्म-पथ को ( णियंच्छे ) नियम से प्राप्त हुआ हूँ ( तस्संतियं ) उन भगवान् के समीप में ( वेणइयं पउं जे ) विनय से प्रयुक्त होता हूँ। ( काएण-वाचामणसा ) काय से, वचन से और मन से ( वि ) भी ( णिच्चं ) नित्य ( तं) उनको ( सिर पंचमेण सक्कारए ) पंचांग से नमस्कार करता हूँ। अर्थात् जिन जिनेन्द्रदेव के समीप मैं धर्मपथ को नियम से प्राप्त हुआ हूँ उन जिनदेव के समीप में विनय से प्रयुक्त होता हूँ, और काय से वचन से, मन से भी नित्य ही उनको पंचांग ( दो हाथ, दो पैर और एक सिर ) नमस्कार भी करता हूँ |
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सुदं मे आउस्संतो ! इह खलु समणेण, भयवदो, महदिमहावीरेण, महा-कस्सवेण, सव्वण्हुणा, सव्वलोग-दरिसिणा, सदेवासुर- माणुसस्स लोयस्स, आगदिगदि-चवणोववादं, बंध, मोक्खं, इडिं, ठिदि, जुदि अणुभाग, तक्कं, कलं, मणो, माणसियं, भूतं, कयं, पडिसेवियं, अदिकम्म, अरुह-कम्म, सव्वलोए, सव्वजीवे, सव्वभावे, सव्वं समं जाणंता पस्संता विहर- माणेण, समणाणं पंचमहत्वदाणि, राइभोयण-वेरमण-छट्ठाणि, अणुव्वदाणि स-भावणाणि, समाउग पदाणि, स-उत्तर-पदाणि, सम्म धम्म उवदेसिदाणि ।
तं जहा