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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका १३५ जिनों को विद्याधर स्वीकार किया गया है। जो सिद्ध हुई विद्याओं से काम लेने की इच्छा नहीं करते, केवल अज्ञान निवृत्ति के लिये उन्हें धारण करते हैं, वे विद्याधर जिन हैं। २०. नो चारणाणं- -उन चागए ऋद्धिधारक जिनों को नमस्कार हो। जो जल-जंघा - तन्तु- फल, पुष्प, बीज, आकाश और श्रेष्ठी के भेद से चारण ऋद्धि आठ प्रकार की हैं। जल, जंघा आदि आठ का आलम्बन लेकर गमन में कुशल ये ऋषिगण जीवों को पीड़ा न पहुँचाकर सुखपूर्वक गमन करते हैं । 1 २१. णमो पण्णसमणाणं - उन प्रज्ञाश्रमण जिनों को नमस्कार हो । औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कर्मजा, परिणामिकी इस प्रकार प्रज्ञा चार प्रकार की है । विनय से अधीत श्रुतज्ञान आदि प्रमादवश विस्मृत हो जाय तो उसे औत्पत्तिकी प्रज्ञा परभव में उपस्थित करती है और केवलज्ञान को बुलाती है । विनय से श्रुत के बारह अंगों का अवधारण करके देवों में उत्पन्न होकर पश्चात् अविनष्ट संस्कार के साथ मनुष्यों में उत्पन्न होने वाले इस भव में पढ़ने, सुनने, व पूछने आदि के व्यापार से रहित जीव की प्रज्ञा औत्पत्तिकी कहलाती हैं। विनयपूर्वक बारह अंगों को पढ़ने वाले के उत्पन्न हुई प्रज्ञा वैनयिकी है। गुरु के उपदेश बिना तपश्चरण से उत्पन्न बुद्धि कर्मजा है अथवा औषध सेवा के बल से उत्पन्न बुद्धि भी कर्मजा है और अपनी-अपनी जातिविशेष से उत्पन्न बुद्धि पारिणामिका कही जाती है 1 २२. णमो आगासगामीणं उन आकाशगामी जिनों को नमस्कार हो । जो आकाश में इच्छानुसार मानुषोत्तर पर्वत से घिरे हुए इच्छित प्रदेशों में गमन करने वाले हैं। प्र० – आकाशचारण और आकाशगामी में क्या भेद है ? उ० – चरण, चारित्र संयम व पापक्रियानिरोध एकार्थवाची हैं। जीव - पीड़ा के बिना पैर उठाकर गमन करने वाले आकाश चारण हैं, पल्यंकासन, कायोत्सर्गासन, शयनासन और पैर उठाकर इत्यादि सब प्रकारों से आकाश
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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