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________________ - - - - - विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका "भगवन् क्या आज्ञा है" ऐसा कहकर उपस्थित होती हैं। इस प्रकार उपस्थित सब विद्याओं के जो लोभ को प्राप्त होता है वह भिन्न दसपूर्वी है, इनके जिनत्व नहीं रह पाता/क्योंकि इनके महाव्रत नष्ट हो जाते हैं । किन्तु जो कर्मक्षय के अभिलाषी होकर उनमें लोभ नहीं करते वे अभित्रदसपूर्वी कहलाते हैं। १६. णमो चउदसपुष्वीणं--उन चौदहपूर्वधारी जिनों को नमस्कार हैं । जो सफल श्रुतधारक होने से चौदहपूर्वी कहलाते हैं। यद्यपि अंग व चौदह पूर्वो में जिनवचनों की अपेक्षा समानता है तथापि चौदह पूर्व की समाप्ति करके रात्रि में कायोत्सर्ग में स्थित साधु की, प्रभात समय में भवनवासी, वानव्यन्तर, ज्योतिषी और कल्पवासी देवों द्वारा महापूजा ( शंख काहल आदि के शब्दों से ) की जाती है । [ विद्यानुवाद और लोकबिन्दुसार का महत्व है क्योंकि इनमें देवपूजा पायी हाती है ] चौदहपूर्वीधारक की विशेषता है कि ये मिथ्यात्व को प्राप्त नहीं होते और उस भव में असंयम को भी प्राप्त नहीं होते हैं। १७ णमो अटुंगमहाणिमित्तकुसलाणं अट्ठांगमहानिमित्तों में कुशलता को प्राप्त जिनों को नमस्कार हो । जो अंग, स्वर, व्यञ्जन, लक्षण, छिन्न, भौम, स्वप्न और अन्तरिक्ष इन आठ निमित्तों के द्वारा जन समुदाय के शुभाशुभ जानने वाले हैं। १८. णमो विउध्वइटिपत्ताणं-उन विक्रियाऋद्धिधारकजिनों को नमस्कार हो जो अणिमा, महिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व और कामरूपित्व इस प्रकार विक्रिया ऋद्धि को प्राप्त जिन हैं। १९. णमो विज्जाहराणं—उन विद्याधर जिनों को नमस्कार हो । जाति, कुल और तप विद्या के भेद से विद्याएँ तीन प्रकार की हैं। स्वकीय मातृपक्ष से प्राप्त विद्याएँ जाति विद्याएँ हैं और पितृपक्ष से प्राप्त हुए कुल विद्याएँ है तथा षष्ठम और अष्टम उपवास आदि करके सिद्ध गई तपविद्याएँ हैं। यहाँ सिद्ध हुई समस्त विद्याओं के कार्य के परित्याग से उपलक्षित
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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