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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका में गमन करने में समर्थ ऋषि आकाशगामी कहे जाते हैं। तप बल से आकाश में गमन करने वाले इन जिनों को नमस्कार हो। १३. पो आसीधिमा-इन आशीर्तिध जिनों को नमस्कार हो। अविद्यमान अर्थ की इच्छा का नाम आशिष है, आशिष है विष जिनका वे आशीविष कहे जाते हैं। मर जाओ इस प्रकार जिसके प्रति निकला वचन उसको मारने में निमित्त होता है, भिक्षा के लिये भ्रमण करो, शिर का छेद हो इस प्रकार जिनके वचन व्यक्तिविशेष के लिये उस-उस कार्य में निमित्त होता है वे आशीर्विष नामक साधु है। अथवा आशिष है अविष अर्थात् अमृत जिनका वे आशीर्विष है । विष से पूरित स्थावर अथवा जंगम जीवों के प्रति “निर्विष हों" इस प्रकार निकला वचन जिनके लिये जिलाता है व्याधि, दारिद्र्य आदि के विनाश हेतु निकला जिनका वचन उस कार्य को करता है वे आशीविष हैं। यहाँ सूत्र का अभिप्राय है कि तप के प्रभाव से जो इस प्रकार की शक्तियुक्त होते हुए भी जो निग्रह व अनुग्रह नहीं करते हैं वे आशीविष जिन हैं। २४. णमो दिट्ठिविसाणं-दृष्टिविष जिनों को नमस्कार हो । दृष्टि शब्द से यहाँ चक्ष और मन का ग्रहण किया है। रुष्ट होकर वह यदि "मारता हूँ" इस प्रकार देखते है, सोचते हैं व क्रिया करते हैं, जो मारते हैं, तथा क्रोधपूर्वक अवलोकन से वह अन्य भी अशुभ कार्य को करने वाले दृष्टि विष हैं। इसी प्रकार दृष्टि अमृतों का भी लक्षण जानना चाहिये । इन शुभअशुभ लब्धि से युक्त तथा हर्ष व क्रोध रहित छह प्रकार के दृष्टिविष जिनों को नमस्कार हो। २५. णमो उग्गतवाणं-उग्र तप धारक जिनों को नमस्कार हो । उग्रतप ऋद्धि के धारक दो प्रकार के होते हैं- १. उग्रोग्र तप २. अवस्थित उग्र तप । जो एक उपवास कर पारणा कर दो उपवास, पश्चात् पारणा फिर तीन उपवास कर पारणा, इस प्रकार एक अधिक वृद्धि के साथ जीवन पर्यन्त तीन गुप्तियों से रक्षित होकर उपवास करने वाले उग्रोग्रतपधारक हैं।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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