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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका ४. णमो सम्बोहि जिणाणं-उन सर्वावधि जिनों को नमस्कार हो। जो सर्वावधि जिन समस्त संसारी जीव और समस्त पुद्गल द्रव्य ( अणुमात्र को भी ) जानते हैं ऐसे सर्वावधि जिन परमावधि जिन से महान् हैं। ५. णमो अणतोहि जिणाणं-उन अनन्ताधि जिनों को नमस्कार हो । जिनके अवधिज्ञान की कोई सीमा, मर्यादा नहीं है। इस ऋद्धि के धारक केवलज्ञानी होते हैं। ६. गो गोट्ठदुहरा --- उ.. को जिनों को सम्माकार हो। जैसे-शाली, ब्रीहि, जौ और गेहूँ आदि के आधारभूत कोथली, पल्ली आदि का नाम कोष्ठ है। वैसे श्रुतज्ञान संबंधी समस्त द्रव्य व पर्यायों को धारण करने रूप गुण से कोष्ठ के समान होने से उस बुद्धि को कोष्ठ कहा जाता है । कोष्ठरूप जो बुद्धि है वह कोष्ठबुद्धि है। यह धारणावरणीय कर्म के क्षयोपशम से होता है। ७. पामो बीजबुद्धीणं-उन बीज बुद्धिधारक जिनों को नमस्कार हो। जिस प्रकार बीज, अंकुर, पत्र, पोर, स्कंध, प्रसव, तुष, कुसुम, क्षीर और तंदुल आदिकों का आधार है, उसी प्रकार बारह अंगों के अर्थ का आधारभूत जो पद है वह बीजतुल्य होने से बीज है । संख्यात शब्दों द्वारा भिन्न-भिन्न अर्थों से सम्बद्ध भिन्न-भिन्न लिंगों के साथ बीज पद को जाननेवाली बीजबुद्धि है। बीजबुद्धि अवग्रहावरणीय कर्म के क्षयोपशम से होती है। ८. णमो पदाणुसरीणं-उन पदानुसारी ऋद्धिधारक जिनों को नमस्कार हो। जो पद का अनुसरण या अनुकरण करती है वह पदानुसारी बुद्धि है। बीजबुद्धि से पद को जानकर यहाँ यह इन अक्षरों का लिंग होता है और इनका लिंग नहीं होता इस प्रकार विचार कर समस्त श्रृत के अक्षर और पदों को जाननेवाली पदानुसारी बुद्धि है । यह ईहा और अवायावरणी कर्म के तीव्र क्षयोपशम से होती है। ९. णमो संभिण्णसोदाराणं—संभिन्न श्रोतृ जिनों को नमस्कार हो । एक अक्षौहिणी में नौ हजार हाथी, एक के आश्रित सौ रथ, एक-एक रथ के आश्रित सौ घोड़े और एक-एक घोड़े के आश्रित सौ मनुष्य होते हैं।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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