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________________ ' विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका १३१ - - - णमो जिणाणं, णमो ओहि जिणाणं, णमो परमोहि जिणाणं, णमो सव्वोहि जिणाणं, णमो अणंतोहि जिणाणं, णमो को बुद्धीणं", पामो बीज - बुद्धीणं, णमो - पादाणु- सारीणं, णमो संभिण्ण- सोदारणं', णमो सयं बुद्धाणं, धामो पत्तेय बुद्धाणं", मणो बोहिय- बुद्धाणं, णमो उजु - मदीणं, णमो विउल- मदीणं, पामो दस पुवीणं", णमो चउदस - पुखीणं, णमो अटुंग- महा णिमित्त कुसलाणं १७, णमो विवइड्डि- पत्ताणं, पामो विज्जाहराणं, णमो चारणाणं, णमो पण समणाणं, णमो आगासगामीणं, णमो आसी विसाणं ३, णमो दिद्विविसाणं ४, पामो उग्ग-तावाणं", णमो दित्त तवाणं, णमो तत्त तवाणं २७, णमो महा-तवाणं ", ग्रामो घोर तदाणं, णमो धोरगुणाणं, पामो घोर परक्कमाणं, णमो घोर गुण बंभयारीणं २, ग्रामो आमोसहि पत्ताणं, णमो खेल्लोसहि पत्ताणं, णमो जल्लोसहिपत्ताणं, णमो विप्पोसहि पत्ताणं, णमो सव्वोसहि पत्ताणं", णमो मण-बलीणं, णमो यचि-बलीणं, णमो काय-बलीणं, णमो खीरसवीणं, णमो सप्पि - सवीणं‍, णमो महुर-सवीणं, णमो अमियसवीणं, णमो अक्खीण महाणसाणं, णमो वभाणाणं *", णमो सिद्धायदणाणं, णमो भयवदो महदि- महावीर- वट्टमाण- बुद्ध-रिसीणो - चेदि । 44 NABAL - ८ अर्थ १. णमो जिणाणं उन जिनेन्द्रों को नमस्कार हो। कौन से जिनों को ? तत्परिणत भाव जिन और स्थापना जिनों को नमस्कार हो । २. णमो ओहि जिणाणं - अवधि जिनों को नमस्कार हो 1 रत्नत्रय सहित अवधिज्ञानी अवधि जिन हैं, ऐसे अवधिस्वरूप अथवा रत्नत्रय मंडित देशावधि जिनों को नमस्कार हो ३. णमो परमोहि जिणाणं - उन परमावधि जिनों को नमस्कार हो । जो परम अर्थात् श्रेष्ठ हैं, ऐसा अवधिज्ञान जिनके हैं वे परमावधि 1 जिन हैं। यह ज्ञान देशावधि की अपेक्षा महाविषय वाला है, संयत मनुष्यों में ही उत्पन्न होता है, केवलज्ञान की उत्पत्ति का कारण है, अप्रतिपाती है इसलिये इसे ज्येष्ठपना है ।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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