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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका १२५ प्रतिक्रमण भक्तिः अथ सर्वातिचार-विशुद्ध्यर्थ ( पाक्षिक ) ( चातुर्मासिक ) ( वार्षिक ) प्रतिक्रमण-क्रियायां कृत-दोष-निराकरणार्थं पूर्वाचार्यानुक्रमेण, सकलकर्म-क्षयार्थ, भावपूजा-वन्दना-स्तव-समेतं श्री प्रतिक्रमणभक्ति कायोत्सर्ग करोम्यहम् । ___ अर्थ—अत्व सर्व अतिचारों की विशुद्धि के लिये पाक्षिक, चातुर्मासिक, वार्षिक प्रतिक्रमण क्रिया में कृत दोषों का निराकरण करने के लिए पूर्व आचार्यों के मुत्र से, मकल कर्णे देशा के लिये भात मज़ा, वन्दना व स्तव सहित श्री प्रतिक्रमण भक्ति संबंधी कायोत्सर्ग को मैं करता हूँ। [ इस प्रकार विज्ञापन का उच्चारण कर आचार्य श्री सहित सभी शिष्य व साधर्मी मुनिगण निम्नलिखित णमो अरहताणं इत्यादि दण्डक बोलकर कायोत्सर्ग करें] णमो अरहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं णमो लोए सवसारणं ।। १।। चत्तारि-मंगलं-अरहंता-मंगलं, सिद्धा मंगलं, साहू मंगलं केवलिपण्णतो धम्मो मंगलं । चत्तारि लोगुत्तमा-अरहता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलि-पण्णत्तो धम्मो लोगुतमा । चत्तारि सरणं पव्यज्जामिअरहंते सरणं पधज्जामि, सिद्धे सरणं पधज्जामि, साहू सरणं पव्वज्जामि, केवलिपपणतं धम्म सरणं पव्यज्जामि । अवाइज्ज-दीव-दो- समुद्देसु, पण्णारस-कम्मभूमिसु, जावअरहंताणं, भयवंताणं, आदियराणं, तित्थयराणं, जिणाणं, जिणोत्तमाणं, केवलियाणं, सिद्धाणं, बुद्धाणं परिणिव्बुदाणं, अंतयडाणं, पारगयाणं, धम्माइरियाणं, धम्म-देसगाणं, धम्म- णायगाणं, धम्म-वर-चाउरंगचक्कवट्टीणं, देवाहि-देवाणं, पराणाणं, दंसणाणं, चरित्ताणं, सदा करेमि किरियम्म। करेमि भंते ! सामाइयं सव्व-सावज्ज-जोगं, पच्चक्खामि जावज्जीवं तिविहेण मणसा, वचसा, काएण, ण करेमि, ण कारेमि, अपणं कीरतं
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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