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१. ११. २४ ] हिन्दी अनुवाद उनके शरीरका प्रमाण पूरे सात हाथ हो गया था, तथापि उन्होंने कामके वशीभूत न होकर कामदेव को जीत लिया था। तभी लौकान्तिक देवोंने आकर उन्हें सम्बोधित किया और हाथ जोड़कर उन्हें वेराग्य-भाव उत्पन्न करा दिया। फिर उत्तम चमरोंसे व्यजन करते हुए समस्त देवोंने उनका अभिषेक किया। फिर भगवान् चन्द्रको प्रभासे युक्त पालकीपर विराजमान हुए और ज्ञातषण्डवन में पहुंचे। वहां उन पापहारी परमेश्वरने, मार्गशीर्ष ( अगहन ) कृष्णपक्ष दशमीके दिन जब देवोंका महोत्सव हो रहा था और चन्द्रमा उत्तराफाल्गुनी कौर हाल नक्षों के भोग स्थित था, तभी अपने चारित्रावरण कर्मरूपी मलको दूर कर, षष्ठ उपवास सहित तपश्चरण ग्रहण किया । तभी उन्होंने केश-लोंच किया और इन्द्र ने उन केशोंको एक मणिमय पटल में लेकर क्षीरोदधिमें विसर्जित कर दिया। इस प्रकार वे मुनीन्द्र परमेष्ठी संयम ग्रहण कर आसीन हुए। भारतवर्षको समस्त जनताले उनको स्तुति को । कवि पुष्पदन्त भी उनके . चरणोंको बन्दना करते हैं ॥११॥
इति वीर जिनेन्न गर्भावसरण, जन्म और ठप विषयक प्रथम
सन्धि समाप्त ।। सन्धि १॥