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जी वीरजिणिवचरिउ [१.१५. ५- . जो सत्त-हत्य-सुपमाणियंगु। में विद्धंसिउ दूसहु अणंगु॥ णिन्वेइउ सो मालिय-करेहि। संबोहिउ लोयंतिय-सुरेहि ॥ अदिसिंचिउ पुणु सयलामरेहि। विजिजतड चामर-वरेहि ।। चंदप्पह-सिवियहिँ पहु चडिपणु । तहिं पाह-संड-बणि णवर दिपणु ।। मग्गसिर-कसण-दसमी-दिति । संजायइ तियसुमछवि महति ।। चोलीणइ चरियावरण-पीक । हत्थुत्तर-मज्झासिइ ससंकि ।। छट्टोववासु किउ मलछरेण । तवचरणु लहड परमेसरेण मणिमय-पडले लेपिणु ससेस ।
इंदे खीरण्णवि घित्त केस ॥ धत्ता-परमेट्टि रिसिंदु
थिउ पडिवज्जिवि संजमु । थुउ भरह-णरेहि
पुप्फयंत-वंदिय-कमु ॥११॥
इय वीरजिणिदचरिए गमावतरण-जम्म-तप-वण्णणो णाम
पटमो संधि ॥१॥
( महापुराणु संधि ९५-९६ से संकलित )